जनपद बलरामपुर: पचपेड़वा ब्लॉक के नवाडीह में विकास के नाम पर ताले, गरीबों के हक पर पहरा

जनपद बलरामपुर: पचपेड़वा ब्लॉक के नवाडीह में विकास के नाम पर ताले, गरीबों के हक पर पहरा

निष्पक्ष जन अवलोकन। – संवाददाता रिपोर्ट बलरामपुर – सरकार की योजनाओं का उद्देश्य गरीबों और वंचितों को न्याय और सुविधा पहुंचाना है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग तस्वीर पेश कर रही है। जनपद बलरामपुर के विकासखंड पचपेड़वा अंतर्गत ग्राम पंचायत नवाडीह में पंचायत सचिवालय और सामुदायिक शौचालय वर्षों से बंद पड़े हैं, जबकि जरूरतमंद ग्रामीण अपने अधिकार के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। 21 जून को इस मामले पर निष्पक्ष जन अवलोकन में खबर प्रकाशित होने के बाद उम्मीद थी कि प्रशासन जागेगा और कार्रवाई होगी। लेकिन खबर को प्रकाशित हुए हफ्तों बीत गए, और न तो दरवाजे खुले, न ही समस्याएं सुलझीं। जाति और आय प्रमाण पत्र के लिए भटकते ग्रामीण ग्राम पंचायत सचिवालय, जो सरकारी योजनाओं का नाड़ी केंद्र माना जाता है, यहां ताला लटकाए बैठा है। न तो यहां गरीबों के जाति प्रमाण पत्र बन रहे हैं, न आय प्रमाण पत्र। ये दस्तावेज न होने के कारण गरीबों को सरकारी योजनाओं, छात्रवृत्ति, राशन कार्ड अपडेट, और कई अन्य लाभ से वंचित होना पड़ रहा है। गांव के अशोक कुमार (बदला हुआ नाम) बताते हैं – > “मैंने तीन बार सचिवालय का चक्कर लगाया, लेकिन हर बार ताला लगा मिला। बिना जाति और आय प्रमाण पत्र के मेरी बेटी का एडमिशन अटक गया है। अधिकारी सुनते ही नहीं।” सामुदायिक शौचालय बने, लेकिन ताले में जकड़े स्वच्छ भारत मिशन के तहत गांव में लाखों की लागत से सामुदायिक शौचालय बनाए गए। उद्देश्य था कि जिनके घर में शौचालय नहीं है, वे इसका इस्तेमाल कर सकें। लेकिन यहां हकीकत यह है कि शौचालय भी बंद पड़ा है। सूत्रों के अनुसार, शौचालय की चाबी जिम्मेदार लोगों के पास है, लेकिन गरीबों को इसकी सुविधा नहीं दी जा रही। नतीजतन, ग्रामीण आज भी पुराने ढर्रे पर खेत-खलिहानों में शौच करने को मजबूर हैं। गांव की महिलाएं बताती हैं – > “रात में बाहर जाना सबसे ज्यादा मुश्किल होता है, लेकिन सामुदायिक शौचालय खुलता ही नहीं। सरकार ने बनाया, पर हमारे लिए नहीं खोला।” अधिकारियों की चुप्पी और लापरवाही संवाददाता ने इस मामले पर एडीओ पंचायत से दूरभाष पर संपर्क करने की कोशिश की। कई बार घंटी बजने के बाद भी फोन नहीं उठाया गया, और एक बार तो घंटी बजने के बाद कॉल काट दी गई। यह चुप्पी सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता की मिसाल बनती जा रही है। कानून और नियम क्या कहते हैं उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम और विभिन्न सरकारी आदेश स्पष्ट करते हैं कि पंचायत सचिवालय सप्ताह में तय दिनों तक खुला रहना चाहिए, ताकि ग्रामीणों के कार्य पूरे हो सकें। इसी तरह, सामुदायिक शौचालय निर्माण का उद्देश्य सार्वजनिक उपयोग है, और इसे अनावश्यक रूप से बंद रखना नियमों का उल्लंघन है। गांव की आर्थिक-सामाजिक हालत नवाडीह गांव की आबादी का बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से कमजोर है। अधिकांश परिवार कृषि मजदूरी या दिहाड़ी मजदूरी से जीवन यापन करते हैं। ऐसे में सरकारी सुविधाओं तक पहुंच उनके लिए जीवनरेखा जैसी है। जब जाति प्रमाण पत्र नहीं बनता, तो अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के गरीब छात्र छात्रवृत्ति से वंचित हो जाते हैं। जब आय प्रमाण पत्र नहीं मिलता, तो कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। और शौचालय की सुविधा न होना, स्वास्थ्य और सुरक्षा दोनों के लिए खतरा है। जनता का गुस्सा और सवाल गांव के बुजुर्ग रामदेव यादव सवाल उठाते हैं – > “सरकारी पैसे से सुविधा बनी, पर हमको क्यों नहीं मिल रही? क्या हमारा हक सिर्फ कागजों में है?” ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही कार्रवाई नहीं हुई, तो वे सामूहिक रूप से ब्लॉक मुख्यालय तक पैदल मार्च करेंगे। मांगें 1. पंचायत सचिवालय को तत्काल खोलकर नियमित कार्यप्रणाली सुनिश्चित की जाए। 2. जाति, आय और निवास प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया तेज की जाए। 3. सामुदायिक शौचालय को 24 घंटे खुला रखा जाए और उसकी साफ-सफाई सुनिश्चित की जाए। 4. जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ लापरवाही का मामला दर्ज किया जाए। प्रशासन की जिम्मेदारी सरकार भले ही डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत और सबका साथ-सबका विकास के नारे दे, लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर व्यवस्था सुधरेगी नहीं, तब तक ये नारे खोखले ही रहेंगे। नवाडीह की तस्वीर इस बात का सबूत है कि योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए सिर्फ पैसा खर्च करना काफी नहीं, बल्कि जवाबदेही भी जरूरी है। समापन – गरीबों का हक, सिर्फ कागजों पर नहीं नवाडीह का यह मामला सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उस सिस्टम का आईना है जहां सुविधाएं कागजों में ‘संपन्न’ होती हैं, लेकिन हकीकत में गरीब दर-दर भटकते हैं। अब सवाल यह है कि प्रशासन कब जागेगा और गरीबों को उनका हक देगा? अगर खबर पढ़कर भी अधिकारी नहीं चेते, तो यह मान लेना चाहिए कि ताले सिर्फ पंचायत सचिवालय और शौचालय पर नहीं, बल्कि गरीबों के अधिकारों पर भी जड़ दिए गए हैं।