1400 साल से प्राचीन काल से ही शिव भक्तों की आस्था का केंद्र तामेश्वरनाथ धाम

पांचो पांडव की मां कुंती ने की थी पूजा अर्चना

1400 साल से प्राचीन काल से ही शिव भक्तों की आस्था का केंद्र तामेश्वरनाथ धाम

संत कबीर नगर 13 जुलाई। उत्तर प्रदेश के जनपद संत कबीर नगर में जनपद मुख्यालय खलीलाबाद से मात्र 9 किलोमीटर दक्षिण में स्थित ऐतिहासिक तामेश्वरनाथ धाम शिवभक्तों के लिए किसी तीर्थ से कम नही है। बताया जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना माता कुंती ने अज्ञातवास के दौरान किया था। अलौकिक और पौराणिक मान्यताओं को समेटे यह स्थान सामाजिक गतिविधियों का एक बेहरीन उदाहरण भी है। .

 सावन भर यहाँ पर इक माह का मेला लगा रहता है। इस मंदिर के देखरेख का जिम्मा यहाँ रह रहे गोसाई परिवार ही संभालते हैं। जो अपनी बारी के हिसाब से मंदिर की देखरेख करने के साथ ही उससे होने वाली आमदनी को खर्च करने के अधिकारी भी होते हैं। गोसाई परिवार से ताल्लुक रखने वाले एक बुजुर्ग गोसाई ने बताया कि मंदिर के गर्भगृह का निर्माण आज से करीब 1400 वर्ष पूर्व बांसी के तत्कालीन राजा ने कराया था। उन्होंने आगे बताया कि गोसाई परिवार के पूर्वज टेकधर गोसाई जो की एक सन्यासी भी थे घोरही गांव में अपने रिश्तेदार के वहाँ रहते थे। उन्हें ही भगवान शिव ने सपने में दर्शन दे कर कहा कि मैं यही पर हुँ तुम मेरी पूजा अर्चना क्यूँ नहीं करते हो। जिस पर सन्यासी टेकधर की ऑंखें खुल गयी वह नीद से जग गए। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए कहा कि "हे प्रभु " कुछ चमत्कार दिखाओ फिर माने कि तुम ही यहाँ पर विद्यमान हो। इतना कहने के उपरांत सन्यासी टेकधर ने अपनी पाली हुई गाय से दूध निकाला और शिवलिंग पर चढ़ाना चालू किया। जब शिवलिंग पर दूध चढ़ाना चालू किया तब शिवलिंग जमीन के बराबर ही था। सन्यासी टेकधर शिवलिंग के समीप बैठकर शिवलिंग पर दूध चढ़ाना प्रारंभ किये। इधर ईश्वर ने अपना चमत्कार दिखाना प्रारंभ किया। ज्यों- ज्यों शिवलिंग पर दूध चढ़ता गया, शिवलिंग जमीन से ऊपर उठता रहा सन्यासी टेकधर ने पहले बैठ कर फिर खड़े होकर फिर दोनों हाथों को ऊपर उठा कर शिवलिंग पर दूध चढ़ाते ही रहे। जब उनके हाथ से भी ऊपर शिवलिंग चला गया तब उन्होंने दूध चढ़ाना बंद कर दिया। इस प्रकार शिवलिंग तकरीबन 7 से 8 फुट जमीन से ऊपर पहुँच चुका है तब उन्होंने वही पूजा-अर्चना चालू किया। धीरे-धीरे यह बातें बांसी के तत्कालिक राजा को पता चला। राजा ने तुरंत ही शिवलिंग के दर्शन करने की इच्छा जाहिर की और तत्काल बांसी से शिवलिंग के दर्शन हेतु रवाना हुए। शिवलिंग के समीप आकर राजा ने पूजा अर्चना की और सन्यासी टेकधर को 3 गांव तांबा,शिव शंकर पुर और रामपुर देकर तांबा में एक मंदिर का निर्माण कराया। तांबा जो कि आगे चलकर तामेश्वरनाथ के नाम के जाना गया। जिसके देखरेख के लिए सन्यासी टेकधर को ही सौंप दिया। . उन्होने बताया कि गर्भगृह निर्माण के बाद जैसे-जैसे श्रद्धालु यहाँ आते गए मंदिर निर्माण का कार्य चलता रहा। आज परिसर में मुख्य शिव मंदिर सहित करीब 15 छोटे बड़े शिवालय और हनुमान मंदिर भी है । हर वर्ष श्रावण मास के महीने भर परिसर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुँचती है। सावन में एक महीने तक अनवरत यहाँ मेले का आयोजन होता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु शिव जी को जलाभिषेक करते हैं। . मंदिर परिसर में स्थित एक अर्धनारीश्वर मंदिर की आकृति भी बुद्ध कालीन मंदिर की ही तरह बना हुआ है। इस बात की तस्दीक मंदिर पर पहुँची पुरातत्व विभाग की टीम ने भी किया था। आज भी लोग अपने बच्चों का मुंडन संस्कार यहाँ करवाते हैं। गोस्वामी ने आगे बताया कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां पर कुछ समय गुजारा था। उसी समय माता कुंती ने शिव की आराधना के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। मंदिर से थोड़ी दूर रामपुर में स्थित एक पोखरे का निर्माण भी पांडवों ने कराया था। लोगों का ऐसा मानना है कि इस पोखरे का निर्माण द्वापर युग में होने के वजह से इसका नाम द्वापर रहा होगा। पोखरे के निर्माण में प्रयुक्त ईंट भी अपनी ऐतिहासिक स्थिती को बयां करते है।