मोहर्रम का चांद दिखाई देते ही अजादारो में गम का माहौल अजादारी का शिल शिला शुरू

मोहर्रम का चांद दिखाई देते ही अजादारो में गम का माहौल अजादारी का शिल शिला शुरू

निष्पक्ष जन अवलोकन अजय रावत।। सिरौलीगौसपुर।मोहर्रम का चाँद दिखाई देते ही अज़ादारों में ग़म का माहौल, अज़ादारी का सिलसिला शुरू ग़मे हुसैन मनाओ मगर नमाज़ के साथ, अज़ा का फर्श बिछाओ मगर नमाज़ के साथ — मोहर्रम की आमद के साथ ही अज़ादारी का सिलसिला शुरू हो गया है। हर तरफ माहौल ग़मगीन है और दिलों में इमामे मज़लूम की यादें ताज़ा हो रही हैं। रसूलपुर की क़दीमी इमामबारगाहों और मस्जिद में सदियों पुरानी रवायत के तहत मजलिसें हो रही हैं। इन मजलिसों में मशहूर और मारूफ़ मर्सिया-ख़्वान सय्यद मसूद काज़मी साहब ने अपने जद (पूर्वजों) का मर्सिया अपने खास और दर्दभरे अंदाज़ में पढ़ा, जिससे पूरे मजलिसगाह में सन्नाटा और सिसकियाँ भर गईं। उन्होंने मीर अनीस की रूहानी शैली में ये मर्सिया पढ़ा: > था ये नौहा के मोहम्मद का नवासा हूं मैं, मुझको पहचानो के ख़ालिक का शनासा हूं मैं, ज़ख़्मी होने से, न मरने से हिरासा हूं मैं, तीसरा दिन है, ये गर्मी में के प्यासा हूं मैं, चैन क्या चीज़ है, आराम किसे कहते हैं, इस पे शिकवा नहीं, कुछ सब्र इसे कहते हैं। डॉ. रेहान काज़मी ने इस मौके पर कहा: > “ग़मे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हमें अपने बुज़ुर्गों से विरसे में मिला है। और मक़सद-ए-इमामं हुसैन अलैहिस्सलाम को दुनिया के हर इंसान तक पहुँचाना हमारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी और इबादत है। अज़ादारी सिर्फ मातम नहीं, बल्कि एक पैग़ाम है — ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़े होने का, इंसानियत के हक़ में आवाज़ बुलंद करने का। और हम रोज़े क़यामत तक ये बताते रहेंगे कि बनी उमय्या ने रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम के नवासे और उनके पूरे घराने पर किस तरह के ज़ुल्म किए। हैदर हजरतपुरी आदि ने भी मजलिस में मर्सिया पढी।