हिंदी पत्रकारिता दिवस और उदन्त मार्तण्ड

हिंदी पत्रकारिता दिवस और उदन्त मार्तण्ड

निष्पक्ष जन अवलोकन

प्रमोद सिन्हा

जब देश पर अंग्रेजो की हुकूमत हो हिंदी समाचार निकालना आसान नहीं होता परन्तु यह साहस भरा कार्य पंडित जुगल किशोर ने किया lहिंदी पत्रकारिता का नाम आवे और उदन्त मार्तण्ड को लोग भूल जाये ये संभव नहीं है l उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन पत्रकारिता की विकास माला का महत्वपूर्ण विन्दु है l 4 दिसंबर 1826को इस समाचार का प्रकाशन बंद हो गया था किन्तु जो दीपशिखा उदन्त मार्तण्ड ने प्रज्वलित की वह प्रतिक्षण प्रदीप्त होती रही तथा उसके प्रकाश से हमने स्वाधीन भारत का स्वप्न साकार किया l उदन्त का अर्थ समाचार और मार्तण्ड का अर्थ सूर्य l सूर्य की किरणों की भांति उदन्त मार्तण्ड ने अपने विचारों को आमजनता मे फैलाया तथा क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार करने मेसहयोग दिया l उदन्त मार्तण्ड’ अपने आप में एक साहसिक प्रयोग था, जिसकी पहले अंक की 500 प्रतियां छापी गई थीं. हिन्दी भाषी पाठकों की कमी के कारण कलकत्ता में उसे उतने पाठक नहीं मिले. कलकत्ता को हिन्दी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण अखबार को डाक के जरिए भेजा जाता था, लेकिन डाक विभाग की दरें ज्यादा होने के कारण इसे हिन्दी भाषी राज्यों में भेजना चुनौती बन गया. इसके विस्तार में दिक्कतें होने लगीं.इसका समाधान निकालने के लिएपंडित जुगल किशोर ने ब्रिटिश सरकार ने डाक दरों में रियासत की बात कही ताकि हिन्दी भाषी प्रदेशों में इसे पाठकों तक पहुंचाया जा सके, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हु पैसों की तंगी की वजह से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन लम्बे समय तक नहीं चल सका. नतीजा, 4दिसम्बर 1826 में इसका प्रकाश बंद कर दिया गया. 79 अंक उदन्त मार्तण्ड के प्रकाशक एवं संपादक पंडित युगल किशोर शुक्ला थे जिनका जन्म कानपुर मे हुआ था हिंदी का प्रथम समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड का पहला अंक 30 मई 1826को कलकत्ता से साप्ताहिक प्रकाशन के रूप प्रकाशित हुआ l शुक्ल जी पहले कलकत्ता में प्रोसीडिंग रीडर थे फिर उसी अदालत में वकालत करने लगे l सन 1850 में इन्होने साम्यदण्ड मार्तण्ड का भी प्रकाशन किया l 20 अंगुल लम्बा व 13 अंगुल चौड़ा यह पत्र निश्चय ही सभी दृष्टियो से सुसम्पादित व्यवस्थित पत्र था जिसने कम समय में हिंदी पत्रकारिता के भावी विकास के लिए उर्वरा भूमि पैदा की थी l इसकी भाषा की चर्चा करते हुए पंडित अम्बिका प्रसाद वाजपेयी लिख़ते है कि जहाँ तक उदन्त मार्तण्ड की भाषा का प्रश्न है यह उस समय लिखी जाने वाली किसी भाषा से हीन नहीं है उसके संपादक बहुभाष्य थे यह उनका बड़ा भारी गुण था तथापि प्रूफ की भूले जो प्रेसो में बराबर होती रहती है उनका ध्यान रखकर हमें निःसंकोच पड़ता है कि उदन्त मार्तण्ड हिंदी का पहला समाचार पत्र होने पर भी भाषा एवं विचारों की दृष्टि से सुसम्पादित पत्र था l पत्र के अंतिम अंक में संपादक श्री शुक्ल के ये भावोदगार उनके मन की व्यथा और पीड़ा को वाणी देते है -- "आज दिवस को उग चुक्यो मार्तण्ड उदन्त l अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अंत l"