फर्जी मास्टर रोल का खुलासा, पचपेड़वा में मनरेगा लुटेरा खेल

निष्पक्ष जन अवलोकन। जनपद बलरामपुर के विकासखंड पचपेड़वा में मनरेगा के तहत हो रहे कार्यों में भारी फर्जीवाड़े का खेल सामने आ रहा है। निष्पक्ष जन अवलोकन की टीम जब मौके पर पहुंची, तो जमीनी हकीकत कुछ और ही निकली। जांच के दौरान कई ग्राम पंचायतों में ऑनलाइन अटेंडेंस में दर्ज मजदूर मौके पर काम करते दिखाई ही नहीं दिए। सबसे पहले ग्राम पंचायत रजडेरवा का मामला सामने आया। यहां महज चार मजदूरों के नाम पर छह मास्टर रोल में 52 मजदूरों की ऑनलाइन हाजिरी चढ़ा दी गई थी। लेकिन जब टीम ने मौके पर जाकर देखा, तो वहां कोई मजदूर मौजूद नहीं था। यह साफ संकेत है कि फर्जी तरीके से अटेंडेंस लगाकर सरकारी धन का बंदरबांट किया जा रहा है। इसके बाद ग्राम पंचायत लालपुर भवनडीह की हकीकत सामने आई। यहां दो मास्टर रोल पर 15 मजदूरों की ऑनलाइन अटेंडेंस दर्ज थी, लेकिन जब टीम ने मौके पर पड़ताल की, तो एक भी मजदूर कार्यस्थल पर नहीं मिला। यह सीधा-सीधा भ्रष्टाचार और गरीबों के हक पर डाका है। तीसरा मामला ग्राम पंचायत त्रिलोकपुर का सामने आया। यहां एक मास्टर रोल पर 10 मजदूरों की ऑनलाइन हाजिरी दिखाई गई थी, लेकिन जब टीम ने मौके पर जाकर देखा, तो वहां भी एक भी मजदूर नहीं मिला। सूत्रों ने खुलासा किया कि मजदूरों की असली उपस्थिति दर्ज करने के बजाय “फोटो से फोटो” लेने का खेल चलता है। किसी भी राह चलते व्यक्ति या घूमने वालों को पकड़ लिया जाता है और उनसे फोटो खींच ली जाती है। बाद में उसी फोटो को मजदूरों की अटेंडेंस के नाम पर अपलोड कर दिया जाता है। बताया जाता है कि इस फर्जीवाड़े में शामिल लोग उन व्यक्तियों को कुछ पैसा थमा देते हैं और कह देते हैं कि “बस फोटो खिंचवाओ, बाकी हम संभाल लेंगे।” इस गंभीर मामले पर जब सुशील कुमार अगहरी, प्रोजेक्ट डायरेक्टर (पीडीसी) से बातचीत की गई, तो उन्होंने कहा कि मामले की जांच कराई जाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह पूरा खेल न सिर्फ शासन-प्रशासन की छवि को धूमिल करता है बल्कि मनरेगा जैसी गरीबों और मजदूरों के लिए बनी योजना को खोखला बना रहा है। जब मजदूरों के नाम पर फर्जी अटेंडेंस लगाकर सरकारी धन की लूट होगी, तो असली मजदूरों को रोजगार कहाँ से मिलेगा? ग्रामीणों का कहना है कि यदि इस फर्जीवाड़े पर जल्द रोक नहीं लगाई गई, तो योजनाओं का असली उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। यह खबर एक बार फिर सवाल खड़ा करती है कि क्या प्रशासनिक निगरानी सिर्फ कागजों तक सीमित है और क्या गरीबों के हिस्से का हक इसी तरह फर्जीवाड़ों में डूबता रहेगा