हृदयस्थ ईश्वर की करें उपासना-संत राम रक्षा नंद जी महाराज

हृदयस्थ ईश्वर की करें उपासना-संत राम रक्षा नंद जी महाराज

निष्पक्ष जन अवलोकन/अमर नाथ शर्मा सोनभद्र /हरि हर आदिक जगत में पूज्य देव जो कोई -सदगुरु की पूजा किए सबकी पूजा होई"उक्त बातें मीडिया से संत राम रक्षा नंद जी महाराज ने कहा और बताया कि ओम का जप आर्य -विधि की जागृति है । मात्र जीवन- शैली को ही धर्म की संज्ञा देना भयंकर भूल है । इसका सुधार अपेक्षित है । आपका प्राचीन नाम ' आर्य ' था । एक ईश्वर के दर्शन की विधि आर्य -विधि है । कालांतर में इसका नाम ' सनातन ' पड़ा क्योंकि आत्मा शाश्वत है , सनातन है । उसकी प्राप्त की विधि होने के कारण ' सनातन ' कहा गया । इस जगत रूपी रात्रि में परमात्मा का क्षीण प्रकाश सदा हृदय में विद्यमान है इसलिए एक नाम ' हिंदू ' पड़ा । तीनों नाम का अर्थ एक ही है । तीनों परम पवित्र हैं । इसका आशय है कि जगत के अंधकार में होते हुए भी ह्रदय -देश में वह परमात्मा सदा विद्यमान है । गीता में है कि वह ज्ञेय ब्रह्म ज्योतियो का भी ज्योति है । तम से अत्यंत परे पूर्ण ज्ञान रूप स्वरूप है । ज्ञान द्वारा ही प्राप्त होने वाला है । सब के हृदय में स्थित है । उसका निवास स्थान हृदय है । हृदयस्थ ईश्वर का उपासक होने से हिंदू कहलाए । यह शब्द आर्य सनातन का ही बोधक है ।