राम मंदिर आंदोलन से धर्मध्वजा स्थापना तक—गोरक्षपीठ की ध्वजवाहक भूमिका
अयोध्या में 25 नवंबर को होने वाली धर्मध्वजा स्थापना में गोरक्षपीठ की पांच पीढ़ियों के योगदान की गूंज। महंत दिग्विजयनाथ से महंत अवेद्यनाथ और योगी आदित्यनाथ तक आंदोलन की सतत भूमिका।
निष्पक्ष जन अवलोकन
विभव पाठक
गोरखपुर, 21 नवंबर। प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के संकल्प को इतिहास के स्वर्णिम अध्याय तक पहुँचाने में गोरक्षपीठ की भूमिका निरंतर ध्वजवाहक की रही है। अयोध्या में पांच वर्षों के अंतराल में तीसरा ऐतिहासिक कार्यक्रम—25 नवंबर को होने वाली धर्मध्वजा स्थापना/ध्वजारोहण—इस लंबी यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव होगा। श्रीराम जन्मभूमि के आंदोलन से लेकर प्राण प्रतिष्ठा और अब धर्मध्वजा स्थापना तक, इस यात्रा में गोरक्षपीठ की पांच पीढ़ियों ने उल्लेखनीय योगदान दिया है।
श्रीराम मंदिर आंदोलन का आधार ब्रिटिश काल में ही बन चुका था। गोरखनाथ मंदिर के महंत योगी गोपालनाथ (1855-1885) और उनके उत्तराधिकारी सिद्धयोगी बाबा गंभीरनाथ (1919 में ब्रह्मलीन) द्वारा मंदिर आंदोलन को मार्गदर्शन मिला। आजादी के पश्चात राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के संगठित प्रयासों की नींव रखी तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने।
डॉ. प्रदीप कुमार राव (प्राचार्य, महाराणा प्रताप महाविद्यालय) के अनुसार, वर्ष 1949 में अयोध्या में हुए घटनाक्रम की रणनीति के केंद्र में महंत दिग्विजयनाथ थे। 22/23 दिसंबर को श्रीरामलला विग्रह के प्राकट्य से पूर्व उन्होंने अखंड रामायण पाठ का आयोजन कराया। प्राकट्य के बाद अदालत में मामला पहुँचा, किंतु महंत जी की रणनीति से पहली बार विवादित स्थल पर पूजा संभव हो पाई। 1969 में महासमाधि तक वे इस आंदोलन के लिए सतत सक्रिय रहे।
इसके बाद आंदोलन की बागडोर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने संभाली और इसे राष्ट्रीय स्वर दिया। 1984 में गठन हुई श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के वे सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गए। उनके नेतृत्व में धर्मयात्राएँ, 1989 का विराट हिंदू सम्मेलन, श्रीराम शिला पूजन अभियान तथा कारसेवा ने आंदोलन को निर्णायक रूप प्रदान किया। 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढाँचे के ध्वस्तीकरण तक उनका योगदान निरंतर अग्रणी रहा।
गोरक्षपीठ की यह तपःपरंपरा वर्तमान पीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में मूर्त रूप में परिणत हुई। शीर्ष न्यायालय के 9 नवंबर 2019 के निर्णय के समय वे ही प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इसके बाद भूमि पूजन (5 अगस्त 2020), प्राण प्रतिष्ठा (22 जनवरी 2024) तथा अब धर्मध्वजा स्थापना जैसे ऐतिहासिक आयोजनों का संचालन उनकी देखरेख में हो रहा है।
योगी आदित्यनाथ दिल्ली से पूर्व ही राम मंदिर को अपना जीवन मिशन बताते रहे हैं। मुख्यमंत्री के रूप में वे अयोध्या को श्रीरामयुगीन आभा प्रदान करने के लिए सतत प्रयासरत हैं। परिणामस्वरूप अयोध्या आज विश्व की प्रमुख सांस्कृतिक-धार्मिक नगरी के रूप में विकसित हो रही है।