ब्लॉक में जिम्मेदारों की लापरवाही उजागर — परसोहिया की गौशाला और पंचायत व्यवस्था में खुली बदइंतजामी

ब्लॉक में जिम्मेदारों की लापरवाही उजागर — परसोहिया की गौशाला और पंचायत व्यवस्था में खुली बदइंतजामी

निष्पक्ष जन अवलोकन बढ़नी ब्लॉक ( सिद्धार्थ नगर ) के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत परसोहिया, जो ब्लॉक मुख्यालय से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, आज बदइंतजामी की मिसाल बन चुकी है। ग्राम पंचायत में सरकारी योजनाओं की हकीकत जमीन पर कुछ और ही कहानी बयां करती है। ग्राम पंचायत की गौशाला का हाल बेहद दयनीय है। वहां मौजूद गौ माताएं भूख और प्यास से तड़प रही हैं। चारे और पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। कई गौ माताओं का शरीर हड्डियों का ढांचा बन चुका है, मांस पूरी तरह सूख चुका है। ग्रामीणों का कहना है कि महीनों से न तो कोई अधिकारी निरीक्षण करने आया और न ही कोई व्यवस्था सुधारने की कोशिश की गई। सरकार जहां गौ संरक्षण पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं परसोहिया की गौशाला में लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते गायों की जान खतरे में है। वहीं, सरकार की महत्वाकांक्षी सामुदायिक शौचालय योजना भी इस ग्राम पंचायत में मज़ाक बनकर रह गई है। सरकार ने इस योजना के लिए ग्राम पंचायत को पर्याप्त धनराशि आवंटित की, लेकिन आज भी ग्रामीण खुले मैदान में शौच जाने को मजबूर हैं। शौचालय निर्माण के नाम पर केवल कागज़ी खानापूर्ति की गई, जमीनी स्तर पर कार्य का कोई अस्तित्व नहीं। पंचायत भवन की स्थिति भी निराशाजनक है। पंचायत भवन में न तो कोई सामग्री मौजूद है, न ही कोई सरकारी रिकॉर्ड पारदर्शी रूप से रखा गया है। ग्रामीणों का आरोप है कि जो सामान पंचायत भवन में होना चाहिए, वह प्रधान के घर पर रखा गया है। लोगों को अपने छोटे-छोटे सरकारी कामों के लिए पंचायत भवन आने के बजाय बाहर जाकर अपनी जेब से पैसे खर्च कर कार्य करवाने पड़ते हैं। यह सब उस वक्त हो रहा है जब सरकार “पारदर्शी शासन और जवाबदेही” का दावा करती है। परसोहिया पंचायत में चल रही यह लापरवाही यह साबित करती है कि जिम्मेदार अधिकारी और पंचायत प्रतिनिधि अपने दायित्वों से मुंह मोड़ चुके हैं। ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन तत्काल इस पूरे मामले की जांच करे, गौशाला की व्यवस्था सुधारी जाए, पंचायत भवन का वास्तविक निरीक्षण किया जाए, और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। परसोहिया की यह सच्चाई प्रशासन और सरकार दोनों से सवाल पूछती है — आखिर कब तक योजनाएं कागजों पर चलेंगी और गरीब, गाय और ग्रामीण इसी तरह तड़पते रहेंगे?