नागरिक सेवा के लिए राज्य प्रशासन का हो रूपांतरण- सांसद डा. संगीता बलवंत
निष्पक्ष जन अवलोकन
प्रमोद सिन्हा
गाज़ीपुर संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत 1 दिसंबर से सुचारू रूप से चल रहा है इस दौरान राज्यसभा सांसद डा. संगीता बलवंत ने राज्य स्तरीय कार्यालयों का नाम बदलने की मांग की।डा. संगीता बलवंत ने सदन में माँग रखते हुए कहा कि भारत अभी भी अपने प्रशासनिक ढांचे में शाही या सामंतवादी मानसिकता के अवशेषों से जूझ रहा है, जहाँ कुछ कार्यालय अक्सर शक्ति के धनी के रूप में देखे जाते हैं, न कि सेवा के साधन के रूप में। यह धारणा सरकारी अधिकारियों और उन नागरिकों के बीच दूरी पैदा करती है, जिन्हें वे सेवा देने के लिए बनाए गए हैं।जिला अधिकारी का कार्यालय, साथ ही अन्य महत्वपूर्ण राज्य स्तरीय अधिकारी जैसे उप-जिलाधिकारी, मुख्य विकाश अधिकारी और विभागीय प्रमुख, औपनिवेशिक काल में राजस्व, कानून और प्रशासन को केंद्रीकृत करने के लिए स्थापित किए गए थे। इस अधिकार केंद्रित ढांचे ने एक स्थायी विरासत छोड़ी है, जो आज भी अधिकारियों के नागरिकों के साथ व्यवहार को प्रभावित करती है। यह अक्सर जनभागीदारी को रोकता है, पारदर्शिता को कम करता है, नौकरशाही में बाधाएँ पैदा करता है और आवश्यक सेवाओं के समय पर वितरण में रुकावट डालता है। राज्यसभा सांसद ने उदाहरण देते हुए कहा कि हाल ही में , माननीय प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम सेवा तीर्थ रखा गया है साथ ही राजपथ को कर्तव्यपथ , राजभवन को लोकभवन , केंद्रीय सचिवालय को कर्तव्य भवन नाम दिया गया है जो नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण को दर्शाता है और यह स्पष्ट करता है कि शासन जनता के लिए, जनता द्वारा और जनता के साथ है।ठीक इसी प्रकार सभी राज्य स्तरीय कार्यालयों का नाम बदला जाए जैसे जिलाधिकारी पदनाम को जिला सेवक या उन्हें कुछ इस तरह व्यवस्थित किया जाए कि उनका वास्तविक उद्देश्य सार्वजनिक सेवा को दर्शाए। उनके पदनाम और कार्यप्रणाली में विनम्रता, जवाबदेही और नागरिकों के प्रति सेवा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि अधिकारी जनता के लिए मार्गदर्शक और सहायक के रूप में देखे जाएँ।