बेसकीमती जंगल कटने से खतरे में पर्यावरण, अधिकारी मौन

निष्पक्ष जन अवलोकन। जनपद बलरामपुर विकासखंड पचपेड़वा के अंतर्गत बीरपुर रेंज से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बनगांव रेहरा क्षेत्र में इन दिनों जंगल की अमूल्य हरियाली पर कुल्हाड़ी चल रही है। यहाँ खुलेआम बेसकीमती पेड़ों की कटाई हो रही है और जंगल की बेटियाँ—जो न सिर्फ गांव-देहात की जीवनरेखा हैं बल्कि पूरे पर्यावरण की सांसें भी हैं—तेजी से खत्म की जा रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि दिन-रात जंगल कटने का सिलसिला जारी है, लेकिन वन विभाग और जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंदे बैठे हुए हैं। जब संबंधित अधिकारी से दूरभाष पर संपर्क साधने की कोशिश की गई तो फोन उठाने के बाद बार-बार कॉल काट दी गई। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर इस विनाशकारी खेल में किसकी मिलीभगत है? जंगल हमारे पर्यावरण की रीढ़ हैं। पेड़-पौधे ही वह आधार हैं जिनसे बारिश होती है, हवा शुद्ध होती है और धरती पर जीवन संभव है। लेकिन अगर इस तरह अंधाधुंध कटाई होती रही तो आने वाले वर्षों में न सिर्फ पशु-पक्षियों का बसेरा उजड़ जाएगा, बल्कि इंसानों का जीवन भी संकट में आ जाएगा। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि कभी यह इलाका घने जंगलों से आच्छादित था। यहां की छांव, हरियाली और पक्षियों की चहचहाहट से जीवन महकता था। आज वही जंगल सूने होते जा रहे हैं। बच्चे और महिलाएं लकड़ी और हरियाली के बिना कठिनाई झेल रहे हैं। वन संरक्षण अधिनियम के बावजूद यदि जंगल की हत्या हो रही है तो यह सिर्फ कानून का मजाक नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से खिलवाड़ है। आवश्यक है कि जिम्मेदार अधिकारी तत्काल कार्रवाई करें और जंगल की इस विनाश लीला पर रोक लगाएं। अगर अब भी जंगल नहीं बचे तो आने वाले समय में धरती बंजर और हवा जहर बन जाएगी। समय रहते जंगलों को बचाना ही हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि यही जंगल आने वाली पीढ़ियों की सांस और जीवन की ढाल हैं।