राजा बाबू; साहित्य, भक्ति और संस्कार की उज्ज्वल धरोहर

राजा बाबू; साहित्य, भक्ति और संस्कार की उज्ज्वल धरोहर

निष्पक्ष जन अवलोकन। रामेश्वर विश्वकर्मा रुद्रपुरी। रुद्रपुर (देवरिया)। देवभूमि देवरिया की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक पहचान को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने वाले साहित्यकार, गायक, निर्देशक और शिक्षाविद विन्ध्याचल मणि त्रिपाठी उर्फ राजा बाबू आज किसी परिचय के मोहताज नहीं। स्व. पौहारी शरण त्रिपाठी के सुपुत्र राजा बाबू ने एम.ए., बीएड. की शिक्षा को जीवन-साधना बनाया और शिक्षण को समाज उत्थान का माध्यम।               

 भक्ति, साहित्य और संगीत, तीनों क्षेत्रों में समान रूप से सक्रिय राजा बाबू का आराध्य स्वरूप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं। उनके भक्ति-गीत अयोध्या में श्रीराम विराजें, राम राज्य ही आयेगा, चलो अयोध्या नगरिया सहित भारत माता, मां विन्ध्यवासिनी और लोकआस्था पर आधारित रचनाएँ श्रोताओं को भाव-विभोर करती हैं। साहित्य क्षेत्र में उनकी कृति जय श्रीराम की 11 हजार प्रतियों का देशव्यापी वितरण उनके लेखन की लोकप्रियता का प्रमाण है। देवरिया की आध्यात्मिक महिमा पर आधारित उनकी डॉक्यूमेंट्री देवारण्य क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय मंच पर उजागर करती है। स्त्री-शक्ति पर केन्द्रित उनकी कृति तू नारी है—तू शक्ति है, समाज में सकारात्मक परिवर्तन का सशक्त संदेश देती है।                 इसी क्रम में बुधवार को राजा बाबू ने अपने साहित्यिक साधना-कक्ष, जहाँ वे चिंतन, मनन, काव्य-सृजन और आध्यात्मिक लेखन करते हैं, उन्होंने एक विशेष साहित्यिक भेंट-वार्ता का आयोजन किया। इस अवसर पर उन्होंने प्रत्युष विहार रुद्रपुर के प्रधानाचार्य एवं रेडक्रॉस सोसाइटी के आजीवन सदस्य समाजसेवी राणाप्रताप सिंह, रेडक्रॉस सोसायटी के आजीवन सदस्य रामप्रवेश भारती, तथा चिकित्सक डॉ. एस. एन. त्रिपाठी को अपनी स्वरचित पुस्तक ससम्मान भेंट की। पुस्तक प्रदान करते हुए राजा बाबू ने कहा कि, साहित्य वही है जो समाज को दिशा दे, मन में प्रकाश जगाए और जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाए। शिक्षण, साहित्य, संगीत और संस्कार, चारों दिशाओं में अपने अविरल योगदान से विन्ध्याचल मणि त्रिपाठी उर्फ राजा बाबू आज देवभूमि देवरिया के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक गौरव के उज्ज्वल प्रतीक बन चुके हैं।