गुरुपूर्णिमा - गुरु के प्रति कृतज्ञता का पर्व : डा.ए.के.राय

निष्पक्ष जन अवलोकन
प्रमोद सिन्हा
गाजीपुर। भारतीय सनातनी संस्कृति में गुरु को ईश्वर के समतुल्य माना गया है। सनातनी परंपरा में वैदिक काल से गुरु शिष्य की जो अभूतपूर्व परंपरा रही है उसमें गुरु का विशेष स्थान है। मान्यता है कि गुरु के प्रति समर्पण, विश्वास और आस्था रखने वाले शिष्य सदैव यशस्वी बनते हैं। कहा गया है कि गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा है क्योंकि ईश्वर तक पहुंचाने का मार्ग गुरु ही प्रशस्त करते हैं। "गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।* *बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥" यह वास्तविकता है कि अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पुत्र राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाने में गुरु वशिष्ठ व विश्वामित्र की, श्री कृष्ण को योगीराज बनाने में गुरु सांदीपनि की तथा भीलनी शबरी को साध्वी योगिनी बनाने में गुरु मातंग ऋषि की भूमिका सर्व विदित है। गुरु महिमा से ही ऐसे लोगों ने अपनी कीर्ति स्थापित की है। इसी प्रकार गुरुओं के आशीर्वाद से ज्ञानी शिष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। महाभारत, पुराणों आदि के रचयिता ऋषि व्यास को 'आदि गुरु' माना जाता है। वेद व्यास की जयंती के रूप में गुरु पूर्णिमा प्रति वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को श्रद्धा भाव के साथ मनाई जाती है। गुरु के प्रति अपने अटल श्रद्धा भाव को प्रकट करने और गुरु कृपा व आशिर्वाद के लिए गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व शिष्यों द्वारा विधि विधान के साथ मनाया जाता है। कहा जाता है कि गुरु के बिना आत्मज्ञान संभव नहीं है। इसीलिए ‘गुरु’ को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तुल्य माना गया है — "गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥" आज तकनीकी युग में सब सुविधा होने के बावजूद जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए गुरु की आवश्यकता है और गुरु ही वह शक्ति है जिसके बल पर हम आध्यात्मिक अपने परम गति को प्राप्त कर सकते हैं। इसी भाव के साथ शिष्य समुदाय गुरु के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित कर कृतज्ञता ज्ञापित करता है।