मानव कपाल, जलते दीप और धधकती ज्वाला... महाकुंभ में हुई किन्नर अखाड़े की अघोर काली साधना!
निष्पक्ष जन अवलोकन विजय शुक्ला
प्रयागराज: में पूर्ण महाकुंभ के दौरान किन्नर अखाड़े में तंत्र विधान के मुताबिक अघोरा काली पूजा की गई, जिसमें नए साधकों को दीक्षा दी गई. तमिलनाडु से आए अघोर साधना गुरु महामंडलेश्वर मणि कान्तन ने पूजा संपन्न कराई. जनवरी की सर्द रात, महाकुंभ की वेला और किन्नर अखाड़े में खुले आसमान के नीचे मानव कपाल पर जलते दीपक और हवन कुंड में धधकती ज्वाला... इस सबके बीच डमरू की गूंज और थरथराते ओंठो से निकलते मंत्रों के बीच किन्नर अखाड़े की अघोर काली की साधना की गई.किन्नर अखाड़ा से जुड़े नए साधकों को दीक्षा दी गई. यह पूजा किन्नर अखाड़े की तांत्रिक परंपराओं का एक अहम हिस्सा है. एक बड़े हवन कुंड के चारों ओर दीपों से सजी मानव खोपड़ियां, गूंजते डमरू और मंत्रोच्चारण की थरथराती आवाजें माहौल को रहस्यमय और आध्यात्मिक बना रही थीं. यह साधना तंत्र विद्या, आध्यात्मिक शक्ति और आस्था का अद्वितीय संगम थी. तमिलनाडु से आए महामंडलेश्वर मणि कान्तन ने इस पूजा को संपन्न कराया. उन्होंने अपने शिष्यों को दीक्षा देते हुए अघोर साधना के महत्व और इसकी परंपराओं को समझाया. मणि कान्तन का कहना है कि यह पूजा अघोर तंत्र की सात्विक पूजा है, जिसमें श्रद्धा और साधना का अद्वितीय संयोजन होता है.महामंडलेश्वर पवित्रा मां ने बताया कि यह पूजा जनता के कल्याण और खुशहाली के लिए की जाती है. इसमें तंत्र और धर्म का ऐसा मेल है, जो आध्यात्मिक उन्नति के दरवाजे खोलता है. यह विशेष साधना आमतौर पर काशी के मणिकर्णिका घाट और कामाख्या देवी मंदिर में की जाती है, लेकिन पूर्ण महाकुंभ में इसका महत्व और बढ़ जाता है.दो घंटे तक चली यह साधना किन्नर अखाड़े की विशेष परंपराओं का हिस्सा थी. इस दौरान नए साधकों को दीक्षा देकर उन्हें तंत्र विद्या के बारे में ज्ञान दिया गया. पूजा के बाद श्रद्धालुओं को आशीर्वाद भी दिया गया. महाकुंभ का यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि तंत्र विद्या और परंपरा को संरक्षित करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम है. किन्नर अखाड़े की यह तांत्रिक पूजा श्रद्धा और रहस्य का अद्भुत संगम है.