बेटीयाँ

बेटीयाँ
हमारे गाँव ने बेटी तुम्हारे शहर भेजी है,
पढ़ाई किस तरह से कर रही ये देखते रहना!
खुशी में खिल-खिलाकर-खुल खूब हँसती है,
रुलाई को हँसी में ढालने का ढंग तक नहीँ आता!
दुनिया समझ नहीं पाती..वो मासूम बेचारी है,
नज़रे नंगी हैं...दुपट्टा डालने का ढंग भी नहीँ आता!
कभी कुछ भी नहीँ बोलेगी...संकोच रखती है,
मगर वह किस-२ गली में डर रही है ये देखते रहना!
हर चौराहे अब घूमते आवारा-जंगली कुत्ते हैं,
कौन से चौराहे से मुड़ जाती है..? ये पूछते रहना!
बेटियोँ को झूठे...सच्चाई से माल/समान बोल देते,
कोई झूठ के ठेले पर उसे प्यार से कल को बेच न दे,
उसमें भी माँ-बहन है, इज्जत इसकी संभालते रहना!
- सत्यम सिंह 'विशेन' (Scientist ISRO)