Rani Lakshmibai अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति थीं रानी लक्ष्मीबाई, आखिरी सांस तक अंग्रेजों से करती रहीं युद्ध
अंग्रेजी हुकूमत लगातार रानी लक्ष्मीबाई पर दबाव बना रही थी। वहीं लक्ष्मीबाई को भी यह समझ आ गया था कि अंग्रेजों की नजर उनके राज्य पर है। ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई ने उन्होंने महाराजा गंगाधर के चचेरे भाई दामोदर को अपना दत्तक पुत्र बना लिया।
अपने बचपन में हम सभी ने 'बुंदेले हरबोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो, झांसी वाली रानी थी' कविता पढ़ी है। इस कविता में रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के बारे में सुनने को मिलता है। आज ही के दिन यानी की 17 जून को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई थी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई असाधारण व्यक्तित्व की धनी और अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति थीं। उन्होंने जीवन के आखिरी क्षण तक अंग्रेजों के सामने हार नहीं मानी और युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुईं। लेकिन अपने जीते जी उन्होंने अंग्रेजों को झांसी पर कब्जा नहीं करने दिया। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
बनारस के एक मराठी परिवार में 19 नवंबर 1828 को रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ था। लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था। जिसके चलते लोग उनको प्यार से मनु बुलाते थे। साल 1842 में झांसी के महाराज गंगाधर राव नेवलेकर से मनु की शादी हो गई और शादी के बाद उनको लक्ष्मीबाई कहा जाने लगा। शादी के बाद लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन वह पुत्र सिर्प 4 महीने जीवन रहा। इसके बाद लक्ष्मीबाई की किस्मत करवट लेने लगी। विवाह के 11 साल बाद महाराज गंगाधर राव नेवलेकर का भी निधन हो गया। पति और पुत्र को खोने के बाद लक्ष्मीबाई ने झांसी की सत्ता अपने हाथ में ली और अपने साम्राज्य और साम्राज्य के लोगों की रक्षा करने की
कब्जे के फिराक में रहे अंग्रेज
जब झांसी के महाराज की मृत्यु हुई तो उस दौरान भारत में ब्रिटिश इंडिया कंपनी का वायसराय डलहौजी थे। डलहौजी को यह समय झांसी पर कब्जा करने का सबसे बेहतर समय लगा। क्योंकि इस समय झांसी की रक्षा करने और जंग लड़ने वाला कोई नहीं था। महाराजा की मृत्यु के बाद डलहौजी ने रानी लक्ष्मीबाई से बातचीत का दौर शुरू किया।
लक्ष्मीबाई के सामने रखी पेशकश
अंग्रेजी हुकूमत लगातार रानी लक्ष्मीबाई पर दबाव बना रही थी। वहीं लक्ष्मीबाई को भी यह समझ आ गया था कि अंग्रेजों की नजर उनके राज्य पर है। ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई ने उन्होंने महाराजा गंगाधर के चचेरे भाई दामोदर को अपना दत्तक पुत्र बना लिया। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर देती है और लक्ष्मीबाई के खिलाफ हो जाती है। वहीं अंग्रेजी हुकूमत ने झांसी के किले के बदले रानी को सालाना 60000 रुपये पेंशन देने की पेशकश की थी।
झुकने से किया इंकार
दरअसल, रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से जंग नहीं चाहती थीं। लेकिन वह किसी भी परिस्थिति में झांसी अंग्रेजों के हवाले नहीं करना चाहती थीं। माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई से अंग्रेजों ने निहत्थे मिलने के लिए कहा था, जिससे कि बातचीत की जा सके। लेकिन लक्ष्मीबाई को अंग्रेजों की किसी भी बात पर भरोसा नहीं था, जिस कारण उन्होंने अंग्रेजों से मिलने से इंकार कर दिया था।
मैदान-ए-जंग में उतरी मर्दानी
ब्रिटिश फौज ने 23 मार्च 1858 को झांसी पर कब्जा करने के उद्देश्य से आक्रमण कर दिया। भारी बमबारी की मदद से 30 मार्च को अंग्रेज किले की दीवार में सेंध लगाने में सफल हो गए। जिसके बाद 17 जून 1858 को लक्ष्मीबाई आखिरी बार जंग के मैदान में उतरी थीं। उन्हें नहीं पता था कि 17 जून की रात उनकी आखिरी रात होने वाली हैं। रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांध कर अंग्रेजी फौज का सामना करने के लिए निकलीं।
लक्ष्मीबाई की मौत को लेकर कई मत
बता दें कि रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु को लेकर कई मत सुनने को मिलते हैं। हालांकि लॉर्ड कैनिंग की रिपोर्ट पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया जाता है। लॉर्ड कैनिंग की रिपोर्ट के अनुसार, अंग्रेज़ सैनिक ने लक्ष्मीबाई को पीछे से गोली मारी। वहीं जब रानी लक्ष्मीबाई उस सैनिक पर गोली चलाती हैं तो उनका निशाना चूक जाता है। जिसके बाद अंग्रेज सैनिक ने रानी लक्ष्मीबाई की तलवार से हत्या कर दी। ठानी।