शिक्षा के नाम पर मज़ाक: थारू बनकटवा का प्राथमिक विद्यालय महीनों से बंद, बच्चे दर-दर भटकने को मजबूर

शिक्षा के नाम पर मज़ाक: थारू बनकटवा का प्राथमिक विद्यालय महीनों से बंद, बच्चे दर-दर भटकने को मजबूर

निष्पक्ष जन अवलोकन। के पचपेड़वा (बलरामपुर)शिक्षा क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत थारू बनकटवा का प्राथमिक विद्यालय आज भी उपेक्षा का शिकार है। गाँव के मासूम बच्चे किताबों और कापियों के बजाय खेतों, घरों और खेल के मैदानों में समय काटने को मजबूर हैं, क्योंकि विद्यालय का ताला महीनों से नहीं टूटा। ग्रामीणों का कहना है कि विद्यालय में चार अध्यापक तैनात हैं, लेकिन मौके पर एक भी अध्यापक दिखाई नहीं देता। ग्रामीणों ने कई बार खंड शिक्षा अधिकारी से शिकायत की, लेकिन नतीजा वही—सुनवाई नहीं। जिम्मेदार अधिकारी केवल फाइलों में शिक्षा सुधार का दम भरते हैं, जबकि असलियत यह है कि गाँव के बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। निष्पक्ष जन अवलोकन ने 13 तारीख को इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था, लेकिन अधिकारियों की आँख और कान आज भी बंद हैं। विद्यालय के ताले पर जमी धूल और टूटी खिड़कियाँ गवाही देती हैं कि बच्चों का भविष्य किस हद तक अंधेरे में धकेला जा रहा है। ग्रामीणों ने संवाददाता को बताया कि विद्यालय महीनों से नहीं खुला और न ही कोई अध्यापक बच्चों की सुध लेने आता है। शिक्षा के नाम पर यह लापरवाही केवल बच्चों का भविष्य ही नहीं बिगाड़ रही, बल्कि सरकार की योजनाओं और दावों की पोल भी खोल रही है। आज जब देश भर में शिक्षा को लेकर अभियान चलाए जा रहे हैं, स्मार्ट क्लास और डिजिटल इंडिया की बातें हो रही हैं, वहीं थारू बनकटवा जैसे गाँवों में बच्चे प्राथमिक शिक्षा तक से महरूम हैं। मासूम आँखों में स्कूल जाने का सपना हर रोज टूटता है और यह सपना टूटने की आवाज़ दूर-दराज़ तक नहीं पहुँचती। संवाददाता ने जब संबंधित अधिकारी बलरामपुर से दूरभाष पर संपर्क करने की कोशिश की तो घंटी बजती रही, लेकिन फोन उठाना ज़रूरी नहीं समझा गया। यह चुप्पी ही बताती है कि शिक्षा विभाग की संवेदनशीलता कहाँ तक मर चुकी है। आज सवाल यह है कि आखिर गाँव के इन बच्चों का भविष्य कौन सँभालेगा? अधिकारी कब जागेंगे? और क्या शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी इस चुप्पी को सुनकर भी खामोश रहेंगे?