बचपन का संस्कार होता है व्यक्ति निर्माण में सहायक श्रीराम के दर्शन मात्र से ही इन्द्र व अहिल्या का उध्दार कथा व्यास :- परम पूज्य श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज

बचपन का संस्कार होता है व्यक्ति निर्माण में सहायक श्रीराम के दर्शन मात्र से ही इन्द्र व अहिल्या का उध्दार कथा व्यास :- परम पूज्य श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज

निष्पक्ष जन अवलोकन अजय रावत।। बाराबंकी।कथा व्यास जी ने कहा कि दुनिया भर के कौए गंदगी में वास करते हैं परन्तु कागमुशुण्डीजी ने भगवान के जन्म के उपरान्त संकल्प किया कि जब तक भगवान पाँच वर्ष के नहीं हो जाएंगे तब तक सब कुछ त्याग, मैं अवध में ही बास करूंगा तथा राजा दशरथ के महल की मुडेरी पर बैठ भगवान की बाल लीलानों के दर्शन कर जीवन धन्य करुँगा। इसको वर्णित करते हुए सूरदास जी का प्रचलित भजन "जन-जन की जिव्हा पर आज भी अंकित है। "खेलत खात फिरे अंगना, पग पैजनि बाजत पीली कछोटी । काग के भाग कहा कहिए. हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी ।।" कागमुशुंडी जी ने संकल्प लिया था कि भगवान के हाथ का जो झूठन गिरेगा वही प्रसाद ग्रहण करूंगा। कथा व्यास जी ने कहा कि कागमुशुण्डी जी कोई सामान्य कौवा नहीं थे। उनकी दक्षता का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि भगवान भोलेनाथ जी भी कागमुशुण्डीजी से श्रीराम कथा सुनने स्वयं जाया करते थे। आगे की बाल लीला में भगवान श्रीराम के धूल में खेलने और राजा दशरथ के कहने पर माता कौशिल्या द्वारा धूलघूसरित प्रभू को उठाकर दशरथ जी के गोद में देने का सुन्दर चित्रण किया। नामकरण की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि यह नाम ही मनुष्य का भाग्य, भविष्य तय करता है। प्रभु श्रीराम का नाम लेने मात्र से ही मनुष्य धन्य हो जाता है। उन्होने कहा की हमारे समाज में जो बुराईयों व्याप्त है उनका कारण शिक्षा का अभाव ही है, आज जो भारत में शिक्षा दी जा रही है वह संस्कृति के अनुरूप नहीं है। हमारी संस्कृति में शिक्षा धर्म से जोड़ने वाली, त्यागमयी जीवन जीने वाली, व दूसरों का हित करने वाली शिक्षा होती थी। बचपन का संस्कार व्यक्ति निर्माण में सहायक होता है। हमारे शास्त्रों में ग्रह नक्षत्र के आधार पर ही नामकरण करने की व्यवस्था थी। श्रीराम के नाम करण एवं भगवान श्रीराम के बचपन की लीलाओं का वर्णन किया गया। व्यास जी ने कहा हिन्दू धर्म में 16 संस्कार बताये गये हैं, इनमें नामकरण संस्कार भी है, यही संस्कार किसी भी बालक के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं। नाम ही मनुष्य का भाग्य भविष्य तय करता है। पूज्य व्यास जी ने कहा कि नाम भी राशि और ग्रह नक्षत्र के आधार पर होना चाहिए। "जो आनन्द सिंधु सुख राशि सिकर त्रैलोक सुपासी। सो सुखधाम राम असनामा, अखिल लोकदायक विश्रामा।।" आगे की कथा व्यास जी अपने व्याख्यान में बताये कि जब ऋषि विश्वामित्र गुरुकुल एवं यज्ञों की रक्षा हेतु राजा दशरथ से श्रीराम एवं श्री लक्ष्मण जी को लेकर अपने आश्रम आये उस बीच ताड़का/मारिच सुबाहु का वध श्रीराम के हाथों हुआ, तत्पश्चात् विश्वामित्र सीता स्वयंवर का समाचार पाकर मिथिला की ओर दोनों भाईयों के साथ चले, रास्ते में गौतम ऋषि के श्राप द्वारा शिला रूपी अहिल्या का उद्घार हुआ, अहिल्या उद्धार का वर्णन पूज्य व्यास जी ने अति मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया और कहे कि मनुष्य के जीवन में कभी न कभी भूलवश कोई न कोई गलत कार्य हो जाता है जिससे मुक्ति पाना, प्रायश्चित करना ही एकमात्र साधन है। पुरुष या नारि को अपने पाप को छिपाना नहीं चाहिए उसे संत. गुरू, श्रेष्ठजन के सामने व्यक्त करना चाहिए। अगर कही क्षमा याचना नहीं कर सकते तो अपने इष्टदेव मंदिर में (पूजा स्थल पर भगवान के सामने) क्षमा मांगने का एहसास करना चाहिए क्योंकि पाप छिपाने से बढ़ता है व पुण्य बताने से घटता है। भगवान श्रीराम के दर्शन मात्र से इन्द्र एवं गौतम ऋषि के श्राप से शिला रूपी अहिल्या का उद्धार हो गया