पचपेड़वा में शिक्षा व्यवस्था चरमराई, बच्चे स्कूलों में दम तोड़ते सपनों के साथ

प्रशिक्षण कार्यक्रम। पचपेड़वा के शिक्षा क्षेत्र से मिली जानकारी में शिक्षा विभाग की पोल खोल दी गई है। ग्राम पंचायत बनकटवा का प्राथमिक विद्यालय माह में सिर्फ एक-दो दिन ही खुलता है। वह भी सिर्फ हाज़िरजवाबी मुआवज़े के लिए। यहां बच्चों को न तो मिड-डे मील मिलता है और न ही दूध की योजना का लाभ मिलता है। शिक्षा के नाम पर सरकारी कागजों पर सब कुछ चमकीला है, लेकिन हकीकत में दस्तावेजों के टुकड़े महीनों तक जमे हुए हैं। ग्राम पंचायत मोतीपुर हडवा का हाल भी कुछ अलग नहीं। यहां का प्राइमरी स्कूल पूरी तरह से शिक्षा मित्र के तौर पर चल रहा है। स्कूल में टीचर नियोगी की मॅकेट्रिक तो दिखाई देती है, लेकिन स्कूल महीने भर में 29 तारीख को ही खुलता है। सवाल यह है कि बच्चों की पढ़ाई कब और कैसे होगी? वहीं, ग्राम पंचायत धबौलिया का प्राथमिक विद्यालय शिक्षा की प्रतिद्वंद्वी का जीता-जागता उदाहरण है। यहां स्कूल मुश्किल से एक घंटा खुलता है। शिक्षा मित्र कनीज फातमा के द्वारा बच्चों की पढ़ाई का नाम बताया गया है, जबकि अन्य शिक्षकों ने महीनों तक स्कूल का चेहरा तक नहीं दिखाया। स्थिति यह है कि इन कश्मीर में शिक्षा केवल कागज़ों पर दर्ज है, ज़मीनी टुकड़ों में बच्चों का भविष्य अंधकार में बिखरा जा रहा है। न तो किताबें समय पर हैं, न पोषण आहार, और न ही नियमित अध्ययन। मजबूरन अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल की जगह खेत-खलिहान या घर के काम में लगा देते हैं। बैस्ट में यह पहली बार खुलासा हुआ है कि शिक्षा विभाग के छात्र और शिक्षक गैर-जिम्मेदारी से मासूम बच्चों के सपने दम तोड़ रहे हैं। सरकारी मंजूरी और शिक्षा का असली हक इन बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहा है। सवाल यह है कि जब गांव के स्कूल में ही बच्चों के भविष्य को चौपट कर दिया जाएगा, तो शिक्षा का अधिकार केवल कागज़ी नारा बनकर रहेगा।