पं रामदयाल निर्विकार की कविता की पंक्तियां उनके लिए जो लोग दुखी होकर आत्म हत्या कर लेते हैं उनको अपनी कविता के माध्यम से संदेश देने का प्रयास किया

पं रामदयाल निर्विकार की कविता की पंक्तियां उनके लिए जो लोग दुखी होकर आत्म हत्या कर लेते हैं उनको अपनी कविता के माध्यम से संदेश देने का प्रयास किया

निष्पक्ष जन अवलोकन जितिन रावत ।। सिरौलीगौसपुर बाराबंकी।साहित्यकार पं रामदयाल निर्विकार ने अपने आवास ग्राम पीठापुर में ऐसे लोग जो दुखी होकर आत्महत्या कर लेते हैं उनको संदेश देने का प्रयास किया कहा कि मुसीबत के समय में कोई साथ देता नहीं है इसलिए हमें सदैव अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए इसी बात को दोहराते हुए निर्विकार ने अपनी कविता के माध्यम से लोगों को जगाने का प्रयास किया निर्विकार ने अपनी कविता "रण छोड़ू तो धर्म है जाता "शीर्षक से लोगों को जगाने का प्रयास किया कविता जो किस प्रकार है- रण छोड़ू तो धर्म है जाता उतरू तो बस आप साथ निभा ना पता कोई लगी हो चाहे वीरों की छाप रण छोड़ू तो धर्म है जाता कोई व्याकुल कीर्ति बिना कोई बिन धन-धान्य व्याकुल कोई भय में फंसकर कोई झूठी शान रण छोड़ू तो धर्म है जाता युद्ध करूं तो पड़ जाता हूं वीरों बीच अकेला जय लेकर जब निकलूं बाहर आता तब दुनिया का रेला रण छोड़ू तो धर्म है जाता छाप लगी थी जिनके तन पर थे वीरों की शान रेले में वे ऐसे मिलते जैसे मेरी जान रण छोड़ू तो धर्म है जाता हे ईश्वर यह सच ही है तूने रचा कोटी मानव को नहीं विपत्ति में आता कोई बन जाते सब दानव रण छोड़ू तो धर्म है जाता। पं रामदयाल त्रिवेदी निर्विकार