राजावत वंश की कुलदेवी जमवाय माता का मलासा गांव में होगी प्राण प्रतिष्ठा

निष्पक्ष जन अवलोकन।
अंकित तिवारी।
कानपुर देहात। विकास खंड मलासा के मलासा गांव में कछवाओ वंशज के द्वारा कछवाओ की कुलदेवी जमवाय माता की प्राण प्रतिष्ठा और गांव भ्रमण का आयोजन किया जा रहा। इस कार्यक्रम का शुभारंभ 5ओर 6मार्च को गांव भ्रमण इसके बाद दस मार्च को प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन होगा प्राण प्रतिष्ठा के बाद माता का विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा जिसमें समस्त गांव वासियों और क्षेत्र वासियों को भी प्रसादी का वितरण कराया जाएगा।जमवाय माता मंदिर की मुख्य पीठ जमवारामगढ़ पर्वत में स्थित जमवाय माता मंदिर से अखंड ज्योति कछवाओ समाज के द्वारा बसई लाई जायेगी मंदिर का निर्माण कार्य मलासा गांव में कराया गया है।ओर रात्रि का जागरण का भी आयोजन किया जाएगा और सुबह प्रातः 8:00 बजे महिलाओं द्वारा कलश यात्रा भी निकाली गई जो मलासा गांव के मुख्य मार्गो से गाजे बाजे के साथ निकाली जायेगी। वही मंदिर के आयोजक ने बताया है कि इस मौके पर प्राण प्रतिष्ठा की पूजा की जायेगी और हवन में पूर्ण आहुति दी जाएगी इसके बाद विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जाएगा। *क्या है माता एक रहस्य राजस्थान के कछवाह वंश की कुलदेवी के रूप में जमवाय माता की पूजा करते हैं जयपुर से 30 किलोमीटर दूर इस मंदिर का इसका इतिहास बहुत अनोखा और दिलचस्प है।इस मंदिर की स्थापना से पहले जमवारामगढ़ में पुराने समय में मीणों का राज था यह मंदिर जमवारामगढ़ बांध की पहाड़ियों की तलहटी में बना हुआ है. इस मंदिर में विशेष रूप से जयपुर के राजा जो कछंवाह वंश के हैं उनकी कुलदेवी के रूप में जमवाय माता को पूजा जाता है।जमवाय माता मंदिर के गर्भगृह में जमवाय माता की एक प्रतिमा है और दाहिनी ओर गाय के बछड़े और बायीं ओर माता बुढवाय की मूर्ति स्थापित है. इसी मंदिर परिसर में भगवान शंकर का शिवालय और एक भैरव बाबा का मंदिर भी मौजूद हैं. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि नवजात राजकुमारों को रानी निवास के बाहर तब तक नहीं निकाला जाता था जब तक कि जमवाय माता के दर्शन नहीं लगवा लिए जाते थे. साथ ही राज्यारोहण व बच्चों के मुंडन संस्कारों के लिए कछवाहा वंश के लोग इसी मंदिर में दूर-दूर से आते हैं।