धर्म के अनुसार जीवन जीना चाहिए- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर महाराज

धर्म के अनुसार जीवन जीना चाहिए- पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर महाराज

निष्पक्ष जन अवलोकन। मनीष सिंह जादौन उरई (जालौन)।शहर के गल्ला मंडी में चल रहे श्रीविष्णु महायज्ञ में उपस्थित भक्तगणों को कथा सुनाते हुए देवकीनंदन ठाकुर महाराज पूज्य महाराज श्री ने भक्तों को बताया कि सनातन धर्म जीवन को नैतिकता, सत्य, अहिंसा, और धर्म के सिद्धांतों के साथ जीने का मार्गदर्शन देता है। जब हम अपने धर्म के अनुसार चलते हैं, तो हमारे जीवन में सच्ची शांति और संतुलन आता है। नेताओं को जाति के आधार पर नहीं, बल्कि अपने कार्यों और वचनबद्धता के आधार पर वोट मांगने चाहिए। जब नेता अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए काम करते हैं, तो देश का सही विकास संभव हो सकता है।बच्चों की शादी की 20 से 25 साल के बीच होनी चाहिए। यह उम्र शारीरिक और मानसिक रूप से परिवार की जिम्मेदारी संभालने के लिए उचित होती है।मानव को जीवन के हर पहलू को सहजता से स्वीकार करना चाहिए। सुख और दुख दोनों ही जीवन का हिस्सा हैं और हमें इनसे बाहर नहीं भागना चाहिए।मानव को जीवन में भगवद गीता और गरुण पुराण जरूर सुनना चाहिए। ये दोनों ग्रंथ जीवन के सही मार्ग पर चलने की दिशा दिखाते हैं और व्यक्ति के आत्मिक उत्थान में सहायक होते हैं। मानव आज कल गाय की जगह घर में कुत्ता पालने लगा है, जिससे उसका मस्तिष्क और मानसिकता भी उसी दिशा में विकसित हो रही है, जैसे कि कुत्ते की प्रवृत्तियाँ होती हैं। उनका कहना था कि गाय का पालन करना हमारे संस्कारों और धर्म का हिस्सा है, जो एक व्यक्ति को शुद्धता और आत्मिक शक्ति प्रदान करता है। मानव को अपने धर्म के अनुसार जीवन जीना चाहिए। धर्म से भटकने पर व्यक्ति का जीवन असंतुलित हो जाता है और वह सही मार्ग से विमुख हो जाता है। लोग अब सिर्फ मंदिरों में सेल्फी लेने के लिए जाते हैं, जिससे धर्म और पूजा का उद्देश्य खो गया है। मंदिरों में जाने का असली उद्देश्य भगवान की उपासना, ध्यान और आत्मिक शांति प्राप्त करना है, न कि केवल फोटो खींचने और दिखावे के लिए जाना।जीवन में मॉस नहीं खाना चाहिए, क्योंकि यह हमारे धर्म और संस्कारों के विपरीत है। मांसाहार से शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह आत्मिक शांति को भी बाधित करता है। इसके बजाय शाकाहार को अपनाने से शुद्धता, दया और संतुलित जीवन मिलता है।