मां को कैसे करें शांत

मां को कैसे करें शांत

???????????? ????????????‍♀️ *कैसे रखें मन को शांत*????????‍♂️ यह एक प्रकार का ध्यान है जो प्रातःकाल में किया जाता है। इसके लिए प्रातः काल उठकर नित्यादि क्रिया से निवृत्त होकर किसी स्थान पर बिछौना बिछाकर बैठ जाएं। इस ध्यान में रीढ़ को सीधा रख कर, आंखें बंद करके, गर्दन को सीधा रखना है। ओंठ बंद हों और जीभ तालु से लगी हो। सांस धीमी और गहरी लेना है। ध्यान नाभि के पास रखना है। नाभि-केंद्र पर सांस के कारण जो कंपन मालूम होता है, उसके प्रति जागे रहना है। बस, इतना ही करना है। यह प्रयोग चित्त को शांत करता है और विचारों को शून्य कर देता है। इस शून्य से अंततः स्वयं में प्रवेश हो जाता है। इस प्रयोग में हम शांत बैठेंगे। शरीर को शिथिल, रिलैक्स्ड और रीढ़ को सीधा रखेंगे। शरीर के सारे हल-चल, मूवमेंट को छोड़ देंगे। शांत, धीमे और गहरी सांस लेंगे। मौन, अपनी सांस को देखते रहें और बाहर की जो ध्वनियां सुनाई पड़ें, उन्हें सुनते रहेंगे। कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। उन पर कोई विचार नहीं करेंगे। शब्द न हों और हम केवल साक्षी हैं, जो भी हो रहा है, हम केवल उसे दूर खड़े जान रहे हैं, ऐसे भाव में अपने को छोड़ देंगे। कहीं कोई एकाग्रता, कनसनट्रेशन नहीं करनी है। बस, चुप जो भी हो रहा है, उसके प्रति जागरूक बने रहना है। आंखें बंद करके चिड़ियों का चहचहाना, हवाओं के वृक्षों को हिलाते थपेड़े, किसी बच्चे का रोना और पास के कुएं पर चलती हुई रहट की आवाज और बस सुनते रहो, अपने भीतर सांस स्पंदन और हृदय की धड़कन। फिर एक अभिनव शांति और सन्नाटा उतरेगा और आप पाओगे कि बाहर ध्वनि है, पर भीतर निस्तब्धता है। आप पाओगे कि एक नए शांति के आयाम में प्रवेश हुआ है। तब विचार नहीं रह जाते हैं, केवल चेतना रह जाती है। और इस शून्य के माध्यम में ध्यान, अटेंशन उस और मुड़ता है, जहां हमारा आवास है। हम बाहर से घर की ओर मुड़ते हैं। दर्शन बाहर लाया है, दर्शन ही भीतर ले जाता है। केवल देखते रहो देखते रहो-विचार को सांस को नाभि स्पंदन को। और कोई प्रतिक्रिया मत करो। और फिर कुछ होता है, जो हमारे चित्त की सृष्टि नहीं है, जो हमारी सृष्टि नहीं है, वरना हमारा होना है हमारी सत्ता है जो धर्म है, जिसने हमें धारण किया है, वह उद्घाटित हो जाता है और हम आश्चर्यों के आश्चर्य स्वयं के समक्ष खड़े हो जाते हैं।