शिक्षकों को ज्ञान के साथ-साथ संस्कार युक्त शिक्षा देने की भी जरूरत

शिक्षकों को ज्ञान के साथ-साथ संस्कार युक्त शिक्षा देने की भी जरूरत

निष्पक्ष जन अवलोकन।

अनिल तिवारी।

भदोही।

शिक्षक का नाम आते ही हमारे दिमाग़ मे तमाम शिक्षकों के स्वरुप अनायास ही आ जाता है लेकिन उनमे से भी एक शिक्षक सबसे बेहतर समझ मे आते है, क्योंकि उनके तौर तरीके, व्यवहार, पढ़ाने की शैली और अन्य बातों को ध्यान मे रखकर लोग सबसे बेहतर मानते है और सबसे अधिक सम्मान करते है। शिक्षकों को आदिकाल से ही उनकी निस्वार्थ सेवा के लिए सराहा जाता रहा है। उन्हें राष्ट्र निर्माता माना जाता है। जैसा कि कहा जाता है, एक बच्चे के प्रारंभिक वर्ष ही यह तय करते हैं कि वह बड़ा होकर कैसा इंसान बनेगा, और यह ज़्यादातर शिक्षकों के हाथों में होता है। शिक्षकों के समर्पण के लिए, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त न करना गलत होगा। भारत में शिक्षा के क्षेत्र में उनके अनुकरणीय योगदान के लिए, विद्वान, शिक्षक और राजनीतिज्ञ डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत मे 1962 से हर वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है। एक शिक्षक का प्रभाव किसी व्यक्ति पर कक्षा से परे भी होता है। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को समझने और पूरे मन से उनकी सेवा करने के लिए अथक प्रयास करते हैं। वे अपने विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में बहुत ध्यान देते हैं, जिससे उन्हें एक दयालु और सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार व्यक्ति बनने में मदद मिलती है। शिक्षक दिवस हमारे लिए अपने प्रिय शिक्षकों को याद करने और हमारे जीवन में उनकी भूमिका के लिए उनके प्रति कृतज्ञ होने का अवसर है। शिक्षक वह आधारशिला है जिस पर समाज का निर्माण होता है। एक शिक्षक की ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी होती है क्योंकि वे बौद्धिक और रचनात्मक मस्तिष्कों को आकार देने का काम करते हैं जो आगे चलकर समाज का भविष्य बनते हैं। शिक्षकों को देश का सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क होना चाहिए। उनके सम्मान में मनाया जाने वाला शिक्षक दिवस, हमें बौद्धिक और नैतिक मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान करने के लिए हमारे शिक्षकों को याद करने, उनकी सराहना करने और उन्हें धन्यवाद देने का दिन है। चाहे हम कितने भी बड़े हो जाएँ, कुछ शिक्षक ऐसे होते हैं जिनके साथ हम अपने जीवन में हुई प्रगति को साझा करना चाहते हैं, कुछ ऐसे होते हैं जो हमें हमारे माता-पिता से भी ज़्यादा समझते और हम पर विश्वास करते हैं, कुछ ऐसे होते हैं जिनके पास हम कभी भी और कहीं भी नज़र पड़ते ही दौड़ पड़ते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जो अद्भुत शिक्षक होने के साथ-साथ हमारे अच्छे दोस्त भी साबित होते हैं। शिक्षक दिवस इन शिक्षकों को यह बताने का एक अवसर है कि उन्होंने हमारे जीवन पर कितना प्रभाव डाला है। कभी-कभी, यह बस एक और अवसर होता है; ज़रूरी नहीं कि आपको उनके निरंतर प्यार और समर्थन के लिए अपना आभार व्यक्त करने के लिए शिक्षक दिवस तक इंतज़ार करना पड़े। आज के तकनीकी युग मे शिक्षकों की महत्ता पहले की अपेक्षा कुछ जगहों पर कम हुई है तो कुछ जगह पर बढ़ी भी है। पहले के समय मे जो शिक्षक और शिष्य के बीच रिश्ता था वह आज की अपेक्षा पहले प्रगाढ़ था, आज वह प्रेम और सम्मान आधुनिकता के दौर मे कम दिख रहा है, आध्यापकों के सम्मान को लेकर भी कुछ ऐसे मामले देखने को मिलते है जो शिक्षक और शिष्य के रिश्ते को कलंकित भी करता है, कई जगहों पर शिक्षकों की करतूत भी शिक्षक जैसे पवित्र रिश्ते को कलंकित करती है। और यह सब कुछ संस्कार की कमी की वजह से ऐसा हो रहा है। इसलिए शिक्षा के साथ साथ संस्कार भी जरूरी है। क्योंकि शिक्षक जब खुद संस्कारवान नहीं होगा तो बच्चों को किस तरह शिक्षा देगा। जिस तरह शिक्षा का बाजारीकरण हुआ है उससे शिक्षक और शिष्य दोनों प्रभावित है। आज आधुनिकता की चकाचौध मे अधिकतर लोग रिश्तो की परवाह नहीं करते है। केवल खानापूर्ति करना केवल प्रचलन बन गया है, जो कहीं न कहीं आगे के समय केl लिए बहुत चिंताजनक है। इसलिए शिक्षा के स्तर को सुधारने और बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों को अपनी भूमिका मे ज्ञान के साथ साथ संस्कार और मानवीय गुणों को और विकसित करने की जरूरत है। बच्चों द्वारा अपने शिक्षक का सही सम्मान केवल कोई उपहार देकर करने मात्र से कुछ नहीं होगा बल्कि शिक्षकों द्वारा दिये गए ज्ञान और संस्कार को अपने जीवन मे उतार कर एक नई इबारत लिखने की जरूरत है। संतोष कुमार तिवारी भदोही, उत्तर प्रदेश 9453366489