शिव पार्वती विवाह का प्रमुख कारण है शिव पुत्र कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध- राष्ट्रीय संत स्वामी कमलदास जी बापू
निष्पक्ष जन अवलोकन। । शिवसंपत करवरिया ब्यूरो चीफ । चित्रकूट:। श्री लइना बाबा सरकार की विशेष अनुकंपा से महाकुंभ के उपलक्ष्य में श्री परमानन्देश्वर परम धाम महादेव मंदिर तहसील परिसर कर्वी में चल रही 9 दिवसीय श्री शिवमहापुराण कथा में राजस्थान के अलवर से पधारे श्री शिवमहापुराण कथा के राष्ट्रीय कथा वाचक राष्ट्रीय संत स्वामी कमलदास जी बापू ने आज छठवें दिन श्री शिव पार्वती विवाह की कथा विस्तार से सुनाई तथा शिव पार्वती की भब्य झांकी दिखाई। उन्होंने कहा कि वैसे तो शिव पार्वती विवाह के अनेक कारण है लेकिन प्रमुख कारण है तारका सुर दैत्य का शिव पुत्र कार्तिकेय द्वारा वध।क्यों कि तारका सुर ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करके शिव पुत्र कार्तिकेय द्वारा वध किए जाने का वरदान मांगा था। उन्होंने कहा कि एक बार समुद्री तूफ़ान के बाद हजारों लाखों मछलियाँ किनारे पर रेत पर तड़प तड़प कर मर रहीँ थीं ! इस भयानक स्थिति को देखकर पास में रहने वाले एक 10 वर्ष के संवेदनशील बालक से ( अर्थात जो दूसरों का दुःख समझाता है एवं महसूस करता है ) रहा नहीं गया, और वह एक एक करके मछली उठा कर समुद्र में वापस फेकनें लगा ! यह देख कर उसकी माँ बोली;-" बेटा लाखों की संख्या में है , तू कितनों की जान बचाएगा ।" ,यह सुनकर बच्चे ने अपनी कर्म करने की गति को और बढ़ा दिया !माँ फिर बोली :-"बेटा रहनें दे कोई फ़र्क नहीं पड़ता !" बच्चा रोने लगा और एक मछली को समुद्र में फेकतें हुए जोर से बोला माँ "इसको तो फ़र्क पड़ता है"दूसरी मछली को उठाता और फिर बोलता माँ "इसको तो फ़र्क पड़ता हैं" ! माँ ने बच्चे को सीने से लगा लिया !लोगों को हमेशा होंसला और उम्मीद देनें की कोशिश करनी चाहिए , न जानें कब आपकी वजह से किसी की जिन्दगी वदल जाए! ये नेक कर्म आपके प्रारब्ध में संचित होंगे और यही अगले जन्मो के लिए आपके भाग्य का निर्माण करेंगे ! काम छोटा हो या बड़ा इससे फर्क नहीं पड़ता. फर्क पड़ता है काम अच्छा है या बुरा यही आपकी प्रवृतियों को दर्शाता है ! संवेदनशील होना ही आपकी देविक सोच है जो आपको परलोक सिधारने पर देवलोक ले जायेगी ! "मनुष्य अपनी प्रवृतियों के अनुसार है परलोक में "लोक " एवं " योनिया " प्राप्त करता है !" यही शास्त्रों के ज्ञान का निष्कर्ष है ! संवेदनशीलता एक देविक प्रवृति है जो आपको देवलोक ले जाने में सक्षम है ! मानव एक बुद्धिमान प्राणी है ! जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है ,,,उसे आचरण में उतारने की शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि ! परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो ! कथा में साथ में रहने वाली बापू जी की धर्मपत्नी श्रीमती ज्ञानवती देवी मिश्रा ने बताया कि छठवें दिन की कथा सुनने वालों में कथा के मुख्य यजमान अनुसुइया प्रसाद यादव धर्मपत्नी पूनम यादव. मंदिर महंत विद्यानंद जी महाराज तथा सैकड़ों की संख्या में माताएं बहनें उपस्थित रहीं।