इंद्र का अहंकार चूर करने को श्रीकृष्ण ने उठाया गोवर्धन पर्वत

निष्पक्ष जन अवलोकन

इंद्र का अहंकार चूर करने को श्रीकृष्ण ने उठाया गोवर्धन पर्वत

निष्पक्ष जन अवलोकन । प्रशांत जैन। बिल्सी(बदायूँ)। भगवान सभी का अहंकार तोड़ते हैं। इसलिए मानव को कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। जीवन में आगे बढ़ जाने का कभी घमंड न करें। देवताओं के राजा इंद्र का अहंकार भी भगवान के समक्ष नहीं चला। यह विचार कथावाचक हरिओम शरण व्यास ने तहसील क्षेत्र के गांव नगला डल्लू में शिव मंदिर पर आयोजित की जा रही भागवत कथा के चौथे दिन गोवर्धन महत्व का प्रसंग सुनाते हुए व्यक्त किए। कथा व्यास ने कहा कि जब बृजवासी इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें रोका और इंद्र की जगह पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा। क्योंकि यह पर्वत उनके पशुओं का भरण पोषण करता था। इसके बाद लोगों ने श्रीकृष्ण की सलाह पर इंद्र की पूजा की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू की। अपना अपमान होता देख इंद्र नाराज हो गए और उन्होंने क्रोध के वशीभूत होकर वहां मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि सब उनके कहने से हुआ है। तब श्रीकृष्ण अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया। इसके बाद सभी बृजवासी उसके नीचे अपने गाय और बछडे समेत शरण लेने के लिए आ गए। इंद्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हो गए। इसके बाद इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। इसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का प्रचलन शुरू हुआ। इस मौके पर गांव के काफी लोग मौजूद रहे।