1101 साल पुराना प्राचीन काल से ही शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है : तामेश्वर नाथ धाम
गर्भगृह का निर्माण आज से करीब 400 वर्ष पूर्व बांसी के तत्कालीन राजा ने कराया था
निष्पक्ष जन अवलोकन
विजय कुमार सैनी
संत कबीर नगर । सावन का महीना हो और हिंदू अपने त्रिकालदर्शी,भोले भंडारी,अर्धनारीश्वर को याद न करें यह भला कहां संभव है। उनकी पूजा अर्चना ना करें यह भला कहां हो सकता है। हिंदू अपने सनातन धर्म और कर्म से सदा ही हिंदुत्व को जीवंत रखने का कार्य किया है और आज भी करता रह रहा है इसी सनातन धर्म में साल का इक माह सावन का भी आता है। सावन माह हमें अपने कर्मो से आगामी भविष्य को सुगम और सरल बनाने को ईश्वर द्वारा रचित एक पवित्र माह है ।
जनपद खलीलाबाद की हृदय स्थली से मात्र 9 किलोमीटर दक्षिण में स्थित ऐतिहासिक तामेश्वरनाथ धाम शिवभक्तों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है। बताया जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना माता कुंती ने अज्ञातवास के दौरान किया था । अलौकिक और पौराणिक मान्यताओं को समेटे यह स्थान सामाजिक गतिविधियों का एक बेहरीन उदाहरण भी है। भगवान बुद्ध ने यहां पर अपना मुंडन संस्कार करवाया था तभी से यहां बच्चों का मुंडन संस्कार सामाजिक प्रथा में प्रचलित हुआ ! सावन भर यहाँ पर इक माह का मेला लगा रहता है! इस मंदिर के देखरेख का जिम्मा यहां रह रहे गोसाई परिवार ही संभालते हैं। जो अपनी बारी के हिसाब से मंदिर की देखरेख करने के साथ ही उससे होने वाली आमदनी को खर्च करने के अधिकारी होते हैं। गोसाई परिवार से ताल्लुक रखने वाले बुजुर्ग अमरीश गोसाई ने बताया कि मंदिर के गर्भगृह का निर्माण आज से करीब 400 वर्ष पूर्व बांसी के तत्कालीन राजा ने कराया था। अमरीश गोसाई ने आगे बताया कि गोसाई परिवार के पूर्वज टेकधर गोसाई जो की इक सन्यासी भी थे घोरही गांव में अपने रिश्तेदार के वहाँ रहते थे। उन्हें ही भगवान शिव ने सपने में दर्शन दे कर कहा कि मैं यही पर हुँ तुम मेरी पूजा अर्चना क्यू नहीं करते हो । जिसपर सन्यासी टेकधर ने भगवान शिव से कहा कि कुछ चमत्कार दिखाओ फिर माने कि तुम ही यहाँ पर स्थित हो। सन्यासी टेकधर ने अपनी पाली हुई गाय से दूध निकाला और शिवलिंग पर चढ़ाना चालू किया। जब शिवलिंग पर दूध चढ़ाना चालू किया तब शिवलिंग जमीन के बराबर ही था । सन्यासी टेक धर शिवलिंग के समीप बैठकर शिवलिंग पर दूध चढ़ाना प्रारंभ किया! ज्यो - ज्यो शिवलिंग पर दूध चढ़ता गया! शिवलिंग जमीन से ऊपर उठता रहा सन्यासी टेकधर ने पहले बैठ कर फिर खड़े होकर फिर दोनों हाथों को ऊपर उठा कर शिवलिंग पर दूध चढ़ाते ही रहे । जब उनके हाथ से भी ऊपर शिवलिंग चला गया तब उन्होंने दूध चढ़ाना बंद कर दिया। इस प्रकार शिवलिंग तकरीबन 7 से 8 फुट जमीन से ऊपर पहुंच चुका है तब उन्होंने वही पूजा-अर्चना चालू किया।धीरे-धीरे यह बातें बांसी के तत्कालिक राजा को पता चला । राजा ने तुरंत ही शिवलिंग के दर्शन करने की इच्छा जाहिर की और तत्काल बांसी से शिवलिंग के दर्शन हेतु रवाना हुए । शिवलिंग के समीप आकर राजा ने पूजा अर्चना की और सन्यासी टेकधर को 3 गांव तांबा,शिव शंकर पुर और रामपुर देकर तांबा में एक मंदिर का निर्माण कराया । तांबा जो कि आगे चलकर तामेश्वर नाथ के नाम के जाना गया! जिसके देखरेख के लिए सन्यासी टेकधर को ही सौंप दिया । उन्होने बताया कि गर्भगृह निर्माण के बाद जैसे-जैसे श्रद्धालु यहाँ आते गए मंदिर निर्माण का कार्य चलता रहा। आज परिसर में मुख्य शिव मंदिर सहित करीब 15 छोटे बड़े शिवालय और हनुमान मंदिर भी हैं। हर वर्ष श्रावणमास के महीने भर परिसर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुंचती है। सावन में एक महीने तक अनवरत यहां मेले का आयोजन होता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु शिव जी को जलाभिषेक करते हैं। मंदिर परिसर में स्थित एक अर्धनारीश्वर मंदिर की आकृति भी बुद्ध कालीन मंदिर की ही तरह बना हुआ है। इस बात की तस्दीक मंदिर पर पहुंची पुरातत्व विभाग की टीम ने भी किया था। आज भी लोग अपने बच्चो का मुंडन संस्कार यहां करवाते हैं! अमरीश गोस्वामी ने आगे बताया कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां पर कुछ समय गुजारा था! माता कुंती ने शिव की आराधना के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। मंदिर से थोड़ी दूर रामपुर में स्थित एक पोखरे का निर्माण भी पांडवों ने कराया था। लोगों का ऐसा मानना है कि इस पोखरे का निर्माण द्वापर युग में होने के वजह से इसका नाम द्वापर रहा होगा। पोखरे के निर्माण में प्रयुक्त ईंट भी अपनी ऐतिहासिक स्थिती को बयां करते है। सावन महीने में बुलंदशहर, नानपारा, बहराइच की खजले की दुकानें और बिहार प्रांत के पटना शहर से आई मिठाई की दुकानों के साथ झूले और मौत का कुंआ लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रहता है। मेले का लुफ्त उठाने के साथ ही लोग गृह उपयोगी सामान जिनमें लोहे के बर्तन, लकड़ी के सामान, बक्सा, आलमारी आदि की खरीदारी भी करते हैं।