बीडीओ साहब सकरन बताएं महिनों गुजरे जांच में दोषियों पर कार्यवाही सिफर क्यों

बीडीओ साहब सकरन बताएं महिनों गुजरे जांच में दोषियों पर कार्यवाही सिफर क्यों

बीडीओ साहब सकरन बताएं महिनों गुजरे जांच में दोषियों पर कार्यवाही सिफर क्यों

निष्पक्ष जन अवलोकन 

सतीश कुमार सिंह 

 सिर्फ जांच के नाम पर जिम्मेदार शिकायत कर्ता को देते हैं क्या चूरन गोली,बीडीओ साहेब सकरन जांच के बाद भी कार्यवाही सिफर,क्या मुठ्ठी हुई गर्म 

सकरन की नसीरपुर पंचायत रही भ्रष्टाचार से कराह,एक ही काम के क्या बन गए तीन एस्टीमेट

इंटरलॉकिंग निर्माण छोड़ समूची इंटरलॉकिंग ही हो गई हजम,कुतुबापुर में नवनिर्मित इंटरलॉकिंग बनते ही गई बैठ...एक बार फिर मानकों पर उठे सवाल  

सीतापुर।भ्रष्टाचार के मामले पर विकासखंड सकरन आसमान रहा है।एक ग्राम पंचायत नसीरपुर ने तो सारी हदें ही तोड़ दीं, बताते चलें कि एक सच छुपाने के लिए तीन झूठ बोले जा रहे मामला नसीरपुर में सुकई के घर से रामचंद्र के घर तक इंटरलॉकिंग निर्माण को समूचा हजम करने के बाद अब फिर उसी रास्ते के सुनने में आ रहा है कि अलग-अलग नामों से एस्टीमेट बनवा दिए गए हैं।

सीतापुर के मनरेगा घोटालों में से एक सकरन की ग्रामपंचायत कल्ली के गोट शेड घोटाले के बाद नसीरपुर की इंटरलॉकिंग सकरन का नाम रोशन कर रही हैं।

बताते चलें कि नसीरपुर के मजरा कुतुबापुर में नवनिर्मित मानक विहीन इंटरलॉकिंग बनते बनते ही बैठ गई,इंटरलॉकिंग के नीचे लगे खड़ंजे की ईंट ही नदारद के साथ नाम मात्र की रोड़ी ईंट से बनवा डाली गई इंटरलॉकिंग।अब नसीरपुर की इंटरलॉकिंग घोटाले में सुकई के नाम से पूरे गांव में बन गए एस्टीमेट फिर भी रामचंद्र के घर तक आज तक नहीं पहुंची इंटरलॉकिंग।आखिर इस मामले की कब होगी जाँच व जिम्मेदारों पर कार्यवाही? वहीं दूसरी तरफ यह भी चर्चाएं हो रही हैं कि विकासखंड सकरन में पंचायत सचिवों को भ्रष्टाचार करने की आजादी है क्योंकि शायद उन्हें यह भी पता है कि अगर उनके ऊपर कोई जांच होगी तो कार्यवाही तो होने से रही क्योंकि बता दें कि महीना बीत जाने के बावजूद भी जांच हुई और जांच के बाद दोषियों के ऊपर अब तक कार्यवाही नहीं हुई आखिर क्यों? आम जनमानस यह पूंछ रहा है कि खंड विकास अधिकारी सकरन की आखिर कौन सी मानसिकता है की जांच में दोषी होने के बावजूद भी अब तक उनके द्वारा आरोप पत्र उच्चाधिकारियों को नहीं भेजा गया जिससे कि दोषियों पर कार्यवाही हो सके क्योंकि अगर दोषियों पर कार्यवाही ही नहीं हुई तो जांच में दोषी होने का क्या नतीजा? बताते चले कि चर्चा है कि ओड़ाझार पंचायत की जांच में जूनियर इंजीनियर आरईएस सुभाष चन्द्र वर्मा की जांच समिति गठित की गई जांच समिति ने अपनी जांच आख्या खंड विकास अधिकारी को दोषियों के नाम के साथ सौंपी,लेकिन अब तक कार्यवाही नहीं हुई तो वहीं चौराहों पर यह बातें हो रही हैं कि खंड विकास अधिकारी धर्मेंद्र कुमार की मुट्ठी गर्म हो गई है,जिसके चलते कार्यवाही होना अब भूल जाओ जब मुट्ठी गर्म तो कार्यवाही कहां से होगी,तो क्या अब कार्यवाही होना टेढ़ी खीर है?सवाल है कि अगर खंड विकास अधिकारी सकरन निष्पक्ष हैं तो क्या इस प्रकरण पर कार्यवाही होगी या वाकई में जो बातें हो रही हैं मुट्ठी गर्म की वह सही है जिसके चलते कार्यवाही ठंडा बस्ते में डाल दी गई है?क्या होगा यह तो आगे खंड विकास अधिकारी की कलम भी बताएगी या उच्च अधिकारी लेंगे मामले का संज्ञान फिलहाल यह तो आगे पता चलेगा।

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बाक्स 

शासन की जीरो टालरेंस नीति को लगाया जा रहा पलीता

दोष सिद्ध होने के बाद भी भ्रष्टाचार करने वालों कार्यवाही शून्य 

सीतापुर।प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीरो टॉलरेंस नीति को लेकर कड़े आदेश तो दूसरी तरफ प्रशासन के द्वारा सख्त निर्देश भ्रष्टाचार करने वालों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए।परंतु हैरानी की बात यह है कि जीरो टॉलरेंस नीति महज दिखावा रह गई है।एक कहावत जन चर्चाओं में कहीं जा रही है कि हाथी के दांत दिखाने के और और खाने के और होते हैं, मतलब साफ है जांच हुई और जांच के बाद दो सिद्ध हुआ जिसमें आरोप पत्र भी जांच की तीन सदस्यीय टीम द्वारा खंड विकास अधिकारी सकरन को सौंप दी लेकिन हैरानी की बात है कि उसे पर कार्यवाही सिफर है,कहने का तात्पर्य यह है जांच भी हो गई पर कार्यवाही को लेकर स्थिति जस के तस है,क्यों?इसका जवाब आखिर देगा कौन?या वही जिम्मेदार भ्रष्टाचार के कर्ताधर्ता,पालनहार और संरक्षणदाता हैं जिनके आगे रिपोर्ट में दोषी ठहराकर इति श्री कर ली जाती है,बताएं बीडीओ साहब सकरन चुप क्यों हैं?

आखिरकार दोष सिद्ध होने के बाद असलियत की कार्यवाही कौन करेगा?मतलब साफ है कि जब दोष सिद्ध हुआ तो घोटाला हुआ है यह साबित हो गया,जब यह साबित हो गया तो संबंधित जांच टीम की रिपोर्ट के ऊपर उच्चाधिकारियों को अवगत कराना चाहिए और साथ ही उच्चाधिकारियों की ओर से भी इस मामले में संबंधित दोषियों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होनी चाहिए,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।बल्कि सुनने में तो यह आ रहा है कि अभी तक खंड विकास अधिकारी के स्तर से ही ऊपर को जांच रिपोर्ट नहीं भेजी गई,तो आगे की कार्यवाही क्या होगी! खंड विकास अधिकारी ने अगर जांच रिपोर्ट ऊपर नहीं भेजी तो उसका क्या कारण है क्या मामला दबाने की कोशिश की जा रही है,और रिपोर्ट ऊपर न भेजकर बीडीओ साहब इस ओर दोषियों को बचाने की दिशा में पहला कदम बढ़ा चुके हैं?फिलहाल तो इस पर क्या उच्चाधिकारी संज्ञान लेंगे,सवाल है!शासन की जीरो टॉलरेंस नीति पर जो सवाल खड़े हो रहे हैं उसे पर कड़े एक्शन की आवश्यकता है,क्या ऐसा होगा यह तो आगे ही पता चलेगा!