जनप्रतिनिधियों को नहीं सूझता हजारों लोगों का दर्द आजादी के 70 साल बाद भी नसीब नहीं हुआ एक पुल
जनप्रतिनिधियों को नहीं सूझता हजारों लोगों का दर्द आजादी के 70 साल बाद भी नसीब नहीं हुआ एक पुल
निष्पक्ष जन अवलोकन
सतीश कुमार सिंह
राजनीति है कि कुछ और जिसके चलते नहीं बन पाया आजतक कम्हरिया पुल।
सकरन/सीतापुर:दशकों से एक अदद पुल को तरसते कम्हरिया कटेसर,रेंधौरा कुचलैया,मडोर सलौली,बेलवा बसहिया ,ताजपुर सलौली के ग्रामीण,जो चंद कदमों की दूरी कई घंटों व कोसों की दूरी तय करने के बाद ब्लॉक मुख्यालय सांडा को हैं पहुंचते।कम्हरिया कटेसर के लोगों ने आवागमन के लिए एक अस्थायी बांस के पुल का निर्माण कर रखा है जिस पर जान को जोखिम में डाल लोग निकलने को मजबूर हैं।
कुंठित मानसिकता कहें या जनप्रतिनिधियों की अकर्मण्यता जो पूर्व में बिसवां विधान सभा में थी अब सेवता व लहरपुर की सीमा का निर्धारण करती है पर हजारों लोगों की तकलीफ से बेखबर शासन प्रशासन की नहीं पड़ रही नजर,यही नहीं एक अदद पुल की कमी के चलते बिजली,स्वास्थ्य,शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर ये क्षेत्र अपराधियों की शरण स्थली बन चुका है,जिसके चलते आए दिन क्षेत्रीय निवासी रहते हैं अपराधियों के निशाने पर।स्थानीय पुलिस महकमे के लिए भी इस पुल के न होने से आए दिन होती है बड़ी समस्या जब किसी मामले इत्यादि के लिए टापू बन चुके गांवों को पड़ता है जाना।
स्थानीय पंचायत भी इसके लिए नहीं उठा पा रही कोई सार्थक कदम,ग्रामनिवासी हेतराम,वीरेंद्र,धीरज,विनोद,रईश, नरेंद्र, धीरज ने बताया यदि आगामी पंचायती चुनाव तक नहीं बन रहा पुल, रपटा या अन्य सुलभ आवागमन का माध्यम तो या तो करेंगे जल सत्याग्रह या चुनाव का बहिष्कार।