तुलसीदास लोकमंगल के कवि हैं, उन्हें कोई तंत्र में बांध नहीं सकता

<p>तुलसीदास लोकमंगल के कवि हैं, उन्हें किसी तंत्र में नहीं बांधा जा सकता : मुख्य आयकर आयुक्त अमरेश चन्द्र शुक्ल<br>-<br>लोकतंत्र में अंतिम पायदान के व्यक्ति की भी महत्ता : आर्थोपेडिक सर्जन डॉ एस एन पाठक<br>-<br>त्रिवेणी संस्था के तत्वावधान में 'गोस्वामी तुलसीदास की लोकतांत्रिक दृष्टि विषयक संगोष्ठी

तुलसीदास लोकमंगल के कवि हैं, उन्हें कोई तंत्र में बांध नहीं सकता

निष्पक्ष जन अवलोकन। रितेश गुप्ता।

मिर्जापुर। भारत सरकार के आयकर विभाग के पूर्व मुख्य आयुक्त अमरेश चन्द्र शुक्ल ने अपने विद्वतापूर्ण उद्बोधन में रामचरितमानस के प्रणेता गोस्वामी तुलसीदास को लोकतंत्र का पक्षधर रचनाकार कहा। श्री शुक्ल ने कहा कि गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में अनेकानेक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए लोक-शक्ति की महत्ता का वर्णन किया है। 
   श्री शुक्ल रविवार को नगर के बरियाघाट स्थित दी सिटी हाल में गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पर 'गोस्वामी तुलसीदास की लोकतांत्रिक दृष्टि' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि 'जनता की, जनता द्वारा और जनता के लिए' जहां कार्य किया जाता है, उसे ही जनतंत्र या लोकतंत्र की आधुनिक मान्यता का अर्थ यह है कि जहां भेदभाव है, वहां समानता कायम हो लेकिन तुलसी के राम के कार्यकाल में कोई भेदभाव नहीं था। राम के आदर्शों को ध्यान में रखकर तुलसीदास ने लेखनी चलाई।
  श्री शुक्ल ने कहा कि तुलसी किसी तंत्र से नहीं बल्कि लोकमंगल की कामना से अपने साहित्य की रचना की। उन्होंने कहा कि तुलसी किसी पाखंड के समर्थक इसलिए नहीं थे क्योंकि उनकी दृष्टि ज्ञान के साथ विज्ञान पर भी थी। तुलसी का साहित्य आत्म-साक्षत्कार कराता है।
   प्रारंभ में मुख्य अतिथि का परिचय देते हुए नगर के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डॉ एस एन पाठक ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास की दृष्टि की विवेचना से यह ज़ाहिर होता है कि  वे लोकतंत्र में हर व्यक्ति की महत्ता से परिचित हैं। मानस लेखन की शरुआत में ही वे हर नागरिक के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि जनता में हर विचारधारा के लोग रहते है। इसीलिए लोकतंत्र की महत्ता समझने वाले जानकारों के रूप में सन्त जनों की वंदना करते हैं। उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया कि बिना सकारात्मक सोच के लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता लेकिन पांचवें दोहे तक पहुंचते-पहुंचते गोस्वामी जी ने 'बन्दऊँ संत असज्जन चरना, दुखप्रद उभय बीच कछु बरना' चौपाई में वे असज्जन नागरिक की महत्ता भी समझ रहे हैं। गोस्वामी जी, जो लोकतंत्र का दुरुपयोग करते हैं, विधि व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं, उनमें भी यह संभावना देखते हैं कि समय प्रवाह के साथ गलत व्यक्ति भी सुधर सकता है। ऐसा भाव उनके मन में महर्षि वाल्मीकि के जीवन के अध्ययन से समाया रहा होगा।
    कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष रवींद्र कुमार पांडेय ने कहा कि राम को वनवास देने के बाद अयोध्या की जनता का सविनय अवज्ञा आंदोलन, अन्न-जल त्याग की शक्ति से चक्रवर्ती सम्राट के जीवन का अंत लोकतंत्र की अद्भुत शक्ति देखकर गोस्वामी जी लोकतंत्र के हिमायती बनकर गोस्वामी जी ने उसके लिए आध्यात्मिक संविधान की रचना कर डाली। कार्यक्रम का संचालान सलिल पांडेय ने किया। धन्यवाद अधिवक्ता आशुतोष अग्रवाल ने प्रकट किया।