ललितपुर में धूमधाम से मनाया गया डोल ग्यारस पर्व, शहर भ्रमण पर निकले भगवान, जानें-क्या है इतिहास और मान्यता।

डोल ग्यारस को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे. इसी कारण से इस एकादशी को 'जलझूलनी एकादशी' भी कहा जाता है.

ललितपुर में धूमधाम से मनाया गया डोल ग्यारस पर्व, शहर भ्रमण पर निकले भगवान, जानें-क्या है इतिहास और मान्यता।

निष्पक्ष जन अवलोकन। अरविन्द कुमार पटेल।

ललितपुर। पंचायत प्रधान पुरखराज सिंह उर्फ दीनू राजा ब दीवान हिमांशु राजा लोधी युवा प्रदेश मंत्री लोधी समाज अखिल भारतीय उत्तर प्रदेश के नियुक्तियों में सैदपुर में धूमधाम से डोल ग्यारस का पर्व मनाया गया. यहां जलझूलनी एकादशी के अवसर पर प्रदेश भर के सभी जिलों में पालकी में सवार होकर भगवान शहर के भ्रमण पर निकले, जहां लोगों ने भगवान के दर्शन कर मनोकामना की. वैसे तो प्रदेश के बारां का डोल यात्रा और मेला प्रसिद्ध है जहां हजारों सेवकों व श्रद्धालुओं की उपस्थिति में भगवान कल्याण राय जी और रंगनाथ जी को शाही स्नान करवाया गया. हजारो श्रृद्धालुओं ने प्रभु के विगृह स्नान के अलौकिक दृश्य को अपलक निगाहों से निहारा. प्रभु की आरती के बाद भगवान की बाल प्रतिमा की शोभायात्रा भगवान के गर्भगृह से सोने-चांदी की पालकी में बिराजमान करके निकली. डोल ग्यारस का महत्व इतिहासकार पुरुषोत्तम पारीक ने बताया कि डोल ग्यारस को सैदपुर में 'जलझूलनी एकादशी' कहा जाता है. इस अवसर पर गणपति पूजा, गौरी स्थापना की जाती है. कई जगहों पर मेलों का आयोजन भी किया जाता है. पारीक बताते हैं कि इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है फिर शाम को इन मूर्तियों को वापस लाया जाता है. डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है क्या है मान्यता डोल ग्यारस को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे. इसी कारण से इस एकादशी को 'जलझूलनी एकादशी' भी कहा जाता है. इसके प्रभाव से सभी दुःखों का नाश होता है. इस दिन भगवान विष्णु और बालकृष्ण के रूप की पूजा की जाती है जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिलता है. जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं.