रूस की सनक से विश्व शांति को खतरा- संजीव ठाकुर

चीन ने नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान,और श्रीलंका, तालिबान को आर्थिक मदद देकर अपना गुलाम बना लिया है। किंतु भारत से उसकी परंपरागत दुश्मनी अभी तक चली आ रही है।

रूस की सनक से विश्व शांति को खतरा- संजीव ठाकुर


अमेरिका और चीन फिर आमने-सामने आ गए है, इस बार कोई अंतरराष्ट्रीय मुद्दा ना होकर ताइवान के मामले को लेकर अमेरिका और चीन में बेहद तनाव बढ़ गया है। पहले अमेरिका ने ताइवान के बारे में चीन को स्पष्ट बता दिया था कि विस्तार वादी नीति के कारण चीन को आगे नहीं बढ़ने दिया जाएगा, उधर रूस-यूक्रेन युद्ध में पूरा विश्व चिंतित और परेशान है खासकर यूरोप अमेरिका और ब्रिटेन इन्हें चिंता सता रही है कि कहीं पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ परमाणु बम का इस्तेमाल किया तो उसका प्रभाव ज्यादातर यूरोपीय देशों में पड़ने की संभावना होगी और फिर पलटवार से विश्व युद्ध की संभावना बलवती हो जाएगी।

 वहीं दूसरी तरफ वर्तमान में चीन ने सख्त रुख अपनाते हुए अमेरिका को चेतावनी दे डाली है कि वह अपने हितों की रक्षा करने में किसी भी तरह की रियायत नहीं करने वाला हैस चीन ने कहा कि वह अपने अंदरूनी मामले में किसी को दखलंदाजी नहीं करने देगा एवं अपने हितों की रक्षा करना अच्छे से जानता है,चीन ने कहा कि ताइवान को लेकर अमेरिका पूरे विश्व में गलत संदेश प्रसारित करते आ रहा है। ताइवान के मामले में चीन किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा, उल्लेखनीय है कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग बेनबिन एक बार फिर चीन के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा है कि ताइवान उनका हिस्सा है और चीन अपने हितों की रक्षा करना अच्छे से जानता है वह इतना सक्षम है कि किसी भी देश से मुकाबला करने के लिए तैयार है। यह विदित हो कि हाल ही में चीन ने ताइवान पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से उस पर बलपूर्वक कब्जा करने की धमकी दी थीस विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि ताइवान का मामला पूर्णता उनका अंदरूनी मामला है।

 ऐसे में विदेशी दखलअंदाजी किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं की जावेगी, कुछ दिन पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बयान दिया था कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो हम निश्चित तौर पर ताइवान की मदद करेंगे, क्योंकि ताइवान की रक्षा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के इस बयान को ताइवान के प्रशासक तथा आम जनता ने गर्मजोशी से स्वागत किया था, पूरी दुनिया ने इस बात का समर्थन भी किया था। चीन ने अपने जवाब में जबरदस्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ताइवान के मुद्दे पर समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है। अमेरिका गलत संदेश देना बंद करें क्योंकि चीन अपने आंतरिक हितों की रक्षा करने में कोई भी रियायत नहीं करेगा। अक्टूबर 2020 में चीन ने ताइवान पर बड़ा हमला किया था चीन के लगभग 200 लड़ाकू विमान ताइवान की सीमा पर घुस गए थे और इसके बाद चीन तथा ताइवान में तनाव चरम सीमा पर पहुंच गया था चीन ताईवान को अपने देश का एक हिस्सा मानता है और ताइवान इसका जबरदस्त विरोध करता है। इसके पूर्व चीन ने ताइवान पर बलपूर्वक कब्जा करने की सार्वजनिक रूप से धमकी दी थी और चीन बहुत पहले से कहता आ रहा है कि ताइवान का मामला पूरी तरह चीन का अंदरूनी मामला है और इसमें किसी भी देश की दखलअंदाजी के लिए भी सरसों में स्वीकार नहीं की जावेगी।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि ताइवान के मामले में किसी भी रियायत की कोई गुंजाइश नहीं है। चीन अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए चीनी लोगों की मजबूत जनता दृढ़ विश्वास एवं प्रतिबद्धता पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। इसके पूर्व अफगानिस्तान में तालिबानियों द्वारा अमेरिकी सैनिकों की युद्ध के समय तालिबानियों की मदद की घोषणा की थी और तालिबान राज्य बनने के बाद चीन लगातार अफगानिस्तान में तालिबानियों की आर्थिक मदद कर रहा है। उधर प्रशांत महासागर तथा हिंदी चाइना महासागर पर ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका और भारत की नौसेना ने लगातार चीन की बढ़ती दखलंदाजी को कम करने के लिए क्वाड सम्मेलन करते आ रहे हैं। वैसे भी चीन की जिस विस्तार वादी नीति से एशिया के देश तथा अन्य देश अंदर ही अंदर बहुत विरोध भी करते हैं। चीन ने नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान,और श्रीलंका, तालिबान को आर्थिक मदद देकर अपना गुलाम बना लिया है। किंतु भारत से उसकी परंपरागत दुश्मनी अभी तक चली आ रही है।

अमेरिका के बाद चीन ही सामरिक तथा आर्थिक ताकत बना हुआ है। पर किसी न किसी देश को हमेशा परेशान ही करता आया है। चीन की बढ़ती ताकत को देखते हुए अमेरिका उसे अपने से बड़ी ताकत मानने से इंकार कर उसका हर संभव विरोध भी करता आया है और यह वैश्विक सामरिक संतुलन बनाने के लिए जरूरी भी है क्योंकि चीन अपने अंदरूनी मामलों में एक तानाशाही राज्य का रूप ले चुका है और यदि वह वैश्विक ताकत बनता है तो अंतरराष्ट्रीय शांति को खतरा हो हो सकता है। इसीलिए आंचलिक संतुलन बनाने हेतु भारत तथा अमेरिकी संयुक्त रक्षा प्रणाली की आवश्यकता होगी।