जटायु का हुआ अंतिम संस्कार
बाराबंकी ।दुआ देख खर दूषण केरा! जाय सुपनखा रावण प्रेरा? खर दूषण का वध होने के उपरांत सूप नखा अपने भाई रावण के पास पहुंचकर सारा वृतांत सुनाती है रावण ने मन में विचार किया, यह राजकुमार कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि यह साक्षात ब्रह्म है मैंने का भजन नहीं कर सकता लेकिन बात तो कर सकता हूं ऐसा विचार कर रावण अपने मामा मारीच के पास गया सोने का मर् ग बनने के लिए कहने लगा मारीच ने बहुत समझाया रावण नहीं समझता है?
मारीच सोने का मृग बनके राम की कुटी के पास घूमने लगा माता सीता के नजर पड़ी राम जी को मर्ग मारने के लिए भेजा, मरीच राम को बहुत दूर ले कर के चला गया
और मरते समय हां लक्ष्मण की आवाज करने लगा यह शब्द सीता को सुनाई दिए सीता माता ने समझा कि मेरे स्वामी पर दुख आया है तो कुछ मरम् शब्द कह कर के लक्ष्मण को भेज दिया इधर
सीता को अकेली जानकर रावण साधु वेश बनाकर भिक्षा मांगने के लिए आया लक्ष्मण की रेखा को पार ना कर पाने के बाद सीता को रेखा के बाहर आने के लिए कहा जैसे सीता लक्ष्मण रेखा के बाहर आई रावण अपने रूप में आकर सीता माता का हरण कर लिया मार्ग में जटायु श्री युद्ध हुआ अपनी चंद्रहास तलवार से जटायु के पंख को काट दिया सीता माता को ढूंढते हुए राम जी जब जटायु के पास पहुंचे तो अपने हाथों से जटायु का अंतिम संस्कार किया
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